वनों को आग से बचाने के लिए द हंस फाउंडेशन ने बढ़ाये हाथ
तीन हजार वालिंटियर फायर फायटर्स को जोड़ा मुहिम में
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : एक तरफ जहां हंस फाउंडेशन द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आजीविका में निरन्तर सराहनीय कार्य किया जा रहा है। वहीं अब उत्तराखण्ड के वनों को आग से बचाने के लिए द हंस फाउंडेशन द्वारा हाथ बढ़ाये है। हंस फाउण्डेशन के द्वारा संचालित वनाग्नि शमन एवं रोकथाम परियोजना चार वनाग्नि संवेदनशील जिलों पौड़ी गढ़वाल, अल्मोड़ा, बागेश्वर जनपद के 10 विकासखण्डों के 1000 ग्रामों में परियोजना चलायी जा रही है। वन रेंज कार्यालय मटियाली क्षेत्र में आयोजित फायर फायटर्स प्रशिक्षण कार्यक्रम में वन पंचायत नियमावली, वनाग्नि के कारकों, वनाग्नि के मानव वन्य जीव व पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों, बचाव के उपाय, सामुदायिक सहभागिता के महत्व, समुदाय के रोल फायर लाइन निर्माण, वनाग्नि उपकरणों के उपयोग, ईंधन प्रबन्धन की जानकारी दी गई।
इसी क्रम में उत्तराखण्ड को आग से बचाने के लिए द हंस फाउण्डेशन द्वारा संचालित फारेस्ट फायर परियोजना द्वारा भूमि वन संरक्षण वन प्रभाग लैंसडौन के सहयोग से जयहरीखाल रेंज के ग्राम ग्वीन बडा, ग्वीन छोटा, बखरोडी, कोटलमण्डा, कुल्हाड, रैतपुर मल्ला, सतपुली मल्ली, ओडल बडा, ओडल छोटा, कंदरोडा, खण्डाखोली, चमोलीगांव, शीलाबांघाट के 73 ग्रामीणों को वन अग्नि प्रबंधन हेतु प्रशिक्षण प्रदान कर वनों को बचानें के लिए तैयार किया जा रहा है। उत्तराखण्ड राज्य जो कि अपनी बहुमूल्य वन सम्पदा के लिये जाना जाता है, उसे आग से बचाने के लिये जाना जाता है, उसे आग से बचानेेक लिये वन विभाग के अलावा पहली बार किसी संस्था द्वारा ग्रामीणों को जागरूक करने, वन अग्नि रोकने हेतु कार्य किया जा रहा है। परियोजना के अन्तर्गत अब तक 3000 वालिंटियर फायर फायटरर्स को वर्तमान तक इस मुहिम में जोड़ा गया है। उन्हें प्रशिक्षण व वनाग्नि रोकथाम हेतु उपकरण उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रत्येक वालेंटियर का पांच लाख का दुर्घटना बीमा भी किया गया है। इस प्रयास के तहत ग्राम स्तर पर एक समर्पित फायर फायटर्स की टीम तैयार की जा रही है जो वनों को आग से बचाने के लिये कार्य कर रही है। वनाग्नि काल में वन विभाग के सामने सबसे बड़ी समस्या रहती है, सीमित मानव संसाधन एवं सामुदायिक सहभागिता। द हंस फाउण्डेशन के इन प्रयासों के जहां एक तरफ ग्राम स्तर पर ही एक टीम खड़ी की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ सामुदायिक सहभागिता को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।