गीत नाटिका ‘कुदरत का विज्ञान’ के माध्यम से दिया पर्यावरण जागरूकता का संदेश

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पांच दिवसीय बाल लेखन कार्यशाला सम्पन्न
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा द्वारा उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से राजकीय इंटर कॉलेज चाक्यूसैण में आयोजित बच्चों की 5 दिवसीय बाल लेखन कार्यशाला सम्पन्न हो गई है। समारोह में बच्चों द्वारा तैयार हस्तलिखित पुस्तकों की प्रर्दशनी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। बाल कवि सम्मेलन में 12 बच्चों ने कार्यशाला में तैयार स्वरचित कविताओं का पाठ किया। वहीं गीत नाटिका कुदरत का विज्ञान के माध्यम से पर्यावरण का संदेश दिया।
राजकीय इंटर कालेज किनसुर के विज्ञान प्रवक्ता एवं कार्यशाला के स्थानीय संयोजक महेंद्र सिंह राणा द्वारा संपादित हस्तलिखित पत्रिका ‘चाक्यूसैण दर्पण’, पंकज सिंह रावत, मीना कुकरेती, सुनीता बडोला व महेंद्रसिंह राणा द्वारा बच्चों की रचनाओं को जोड़कर बनाई गई 5 दीवार पत्रिकाओं का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। इस मौके पर मुख्य संयोजक बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा के सचिव एवं बालप्रहरी संपादक उदय किरौला ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कार्यशाला की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी कहानी पीं पीं पीं पीं पीं के माध्यम से बच्चों के मन में वैज्ञानिक सोच जाग्रत करने की पहल की। मुख्य अतिथि अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष महावीर सिंह ने बच्चों की प्रस्तुति की सराहना करते हुए कहा कि विज्ञान के प्रयोग केवल बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाओं में होते हैं। ये अवधारणा सही नहीं है। उन्होंने कहा कि आदिकाल से हमारे पूर्वज विज्ञान के कई प्रयोग करते रहे हैं। हमारे घर के किचन में सुबह से शाम तक विज्ञान के कई प्रयोग होते हैं। हम स्कूल में रसायन शास्त्र पढ़ते हैं परंतु किचन में महिलाएं आए दिन ही रसायनों का प्रयोग बहुत ही आसानी से करती हैं। हम जिन मसालों का प्रयोग अपने भोजन में करते हैं। वे केवल मसाले नहीं अपितु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमारे शरीर को लाभ पहुंचाते हैं। राइंकॉ चाक्यूसैण के प्रधानाचार्य जगमोहन सिंह बिष्ट ने कहा कि जिन मान्यताओं को हम अंधविश्वास कहते हैं। अगर हम इसकी तह में जाएंगे तो हम लगेगा कि इन मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में हमने सामाजिक दूरी बनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया। दूसरी ओर हम अपने घर गांव में देखते हैं कि बच्चे के जन्म के समय या सूतक काल में हमारे यहां सामाजिक दूरी बनाए रखने की परंपरा है। इन परंपराओं का कहीं न कहीं वैज्ञानिक आधार है। इन मान्यताओं को हमें क्या क्यों कैसे जैसी कसौटियों पर तर्कसंगत ढंग से सोचकर विचार करना होगा। कार्यक्रम का संचालन छात्रा साक्षी भंडारी ने किया।

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