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सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता का मामला बड़ी बेंच को भेजा, हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी जमानत याचिका

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अहमदाबाद, एजेंसी। गुजरात उच्च न्यायालय ने शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामलों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए कथित तौर पर झूठे सबूत गढ़ने से जुड़े एक मामले में तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि उन्होंने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को खराब करने का प्रयास किया और उन्हें जेल भेजने की कोशिश की। इस बीच हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ तीस्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष पीठ ने उनकी याचिका पर सुनवाई करने के बाद मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की ओर से सीतलवाड को आत्मसमर्पण करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए था। इस पर गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आपत्ति जताई। फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अंतरिम जमानत देने का आदेश पारित किया गया था। वह नौ महीने से जमानत पर हैं। हम सोमवार या मंगलवार को इस मामले पर विचार कर सकते हैं, 72 घंटों में क्या होने वाला है?
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ में दोनों जज की राय अलग-अलग रही। ऐसे में पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के सामने रखने के लिए मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पास भेज दिया।
इससे पहले न्यायमूर्ति निर्जर देसाई की अदालत ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया क्योंकि वह अंतरिम जमानत हासिल करने के बाद पहले ही जेल से बाहर हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा, चूंकि आवेदक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत पर बाहर हैं, इसलिए उन्हें तत्काल आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने आदेश की घोषणा के बाद सीतलवाड़ के वकील द्वारा मांगी गई 30 दिनों की अवधि के लिए आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।
अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि सीतलवाड़ ने अपने करीबी सहयोगियों और दंगा पीड़ितों का इस्तेमाल सरकार को अस्थिर करने और तत्कालीन मुख्यमंत्री (नरेंद्र मोदी) की छवि को खराब करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष झूठे और मनगढ़ंत हलफनामे दाखिल करने के लिए किया।
अदालत ने कहा कि यदि आज किसी राजनीतिक दल ने कथित तौर पर उन्हें (तत्कालीन) सरकार को अस्थिर करने का काम सौंपा है, तो कल कोई बाहरी ताकत इसका इस्तेमाल कर सकती है और किसी व्यक्ति को इसी तरह के प्रयास करने के लिए मना सकती है, जिससे देश या किसी विशेष राज्य को खतरा हो सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि सीतलवाड़ को जमानत पर रिहा करने से यह गलत संकेत जाएगा कि एक लोकतांत्रिक देश में सब कुछ इतना उदार है कि भले ही कोई व्यक्ति तत्कालीन सरकार को सत्ता से हटाने और तत्कालीन मुख्यमंत्री की छवि को बदनाम करने के प्रयास करने की हद तक चला जाए और उसका दोष माफ भी किया जा सकता है। अदालत ने कहा, ऐसे व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है।
बता दें कि सीतलवाड़ को पिछले साल 25 जून को गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार और पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के साथ अहमदाबाद अपराध शाखा पुलिस द्वारा दर्ज अपराध में 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के संबंध में कथित तौर पर “निर्दोष लोगों” को फंसाने के लिए मनगढ़ंत सबूतों के इस्तेमाल करने के आरोप में हिरासत में लिया गया था।
अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई, 2022 को मामले में सीतलवाड़ और श्रीकुमार की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था और कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को यह संदेश जाएगा कि कोई व्यक्ति बिना किसी दंड के आरोप लगा सकता है और बच सकता है। हाईकोर्ट ने तीन अगस्त, 2022 को सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था और मामले की सुनवाई 19 सितंबर को तय की थी। इस बीच, उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद उन्होंने अंतरिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट (एससी) का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दो सितंबर को उन्हें अंतरिम जमानत दे दी थी और उनसे तब तक ट्रायल कोर्ट में अपना पासपोर्ट जमा करने को कहा था, जब तक गुजरात हाईकोर्ट उनकी नियमित जमानत याचिका पर फैसला नहीं कर देता। शीर्ष अदालत ने उनसे मामले की जांच में जांच एजेंसी के साथ सहयोग करने को भी कहा था। सीतलवाड तीन सितंबर को जेल से बाहर आई थीं।
जकिया जाफरी मामले में शीर्ष अदालत के 24 जून के फैसले के कुछ दिनों बाद सीतलवाड़ और दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। बता दें कि 2002 के गुजरात दंगे उस साल 27 फरवरी को गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एक कोच में आग लगाने से भड़के थे। इस घटना में 59 यात्री, जिनमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे हिंदू कारसेवक थे, जलकर मर गए थे। पिछले महीने ट्रायल कोर्ट ने मामले में आरोपमुक्त करने की पूर्व डीजीपी श्रीकुमार की याचिका भी खारिज कर दी थी। श्रीकुमार गुजरात हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मामले में अंतरिम जमानत पर बाहर हैं। मामले के तीसरे आरोपी पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने जमानत के लिए आवेदन नहीं किया है। जब भट्ट को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था, तो वह पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में जेल में थे।

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