तिरंगे ने वर्तमान आकार लेने में तय किया 41 साल का सफर
नई दिल्ली: आज हम और आप जिस तिरंगे को गर्व से देखते, फहराते और सलामी देते हैं, वह सिर्फ भावनात्मक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी बहुत सटीक है। इसमें रंगों का चयन का आधार भले ही भावनाओं से प्रेरित बताया जाता है, लेकिन इसके पीटे विज्ञान भी है। हमारे राष्ट्रध्वज में प्रयोग किए गए रंग देखने वाले की आंखों पर विशिष्ट प्रभाव डालते हैं।
जेएनयू के स्कूल आफ आट्र्स एंड एस्थेटिक्स में विजुअल स्टडीज के प्रोफेसर व आर्ट हिस्ट्री के विशेषज्ञ वाईएस अलोनी बताते हैैं कि चित्रकारी या किसी आर्ट फार्म की व्याख्या करते समय एक शब्द का उपयोग किया जाता है, ग्रे स्केल। रंगों का संयोजन आंखों के माध्यम से मस्तिष्क पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है। यदि रंगों का संयोजन सही नहीं है तो यह ग्रे स्केल में चला जाएगा। यानी मस्तिष्क उसे बहुत प्रभावी ढंग से नोटिस नहीं करेगा। हमारा तिरंगा रंगों के इस विज्ञान का इसका सटीक उदाहरण है। सोचिए, यदि सफेद रंग को ऊपर या सबसे नीचे कर दिया जाता तो क्या यह उतना प्रभावी होता? केसरिया और हरा दोनों ही रंग उभर नहीं पाते। बीच में सफेद रंग की पट्टी दोनों गहरे रंगों को थामती है और उनका प्रभाव बढ़ाती है।