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कोरोना की पहली लहर में जमकर हुआ एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल, यह बेहद खतरनाक

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नई दिल्ली,एजेंसी। कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के समक्ष अप्रत्याशित स्वास्थ्य संकट पैदा कर दिया है। यह ऐसा संकट है, जिसमें अभी तक इलाज और बचाव को लेकर कोई मानक व्यवस्था नहीं खोजी जा सकी है। बचाव के लिए टीका एकमात्र विकल्प है। वहीं इलाज के लिए मरीज और संक्रमण की स्थिति के हिसाब से दवाएं तय होती हैं। इन अनिश्चित परिस्थितियों में कई लोग अधूरी जानकारियों का भी शिकार हुए। अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोध में भी ऐसी ही एक चौंकाने वाली बात सामने आई है।
नए अध्घ्ययन में पाया गया है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का जमकर इस्तेमाल हुआ, जबकि ये दवाएं केवल बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण पर कारगर होती हैं, कोविड-19 जैसे वायरस वाले संक्रमण पर नहीं। एंटीबायोटिक्स का इस्तेमालरू केवल किसी दवा के उपयोग या दुरुपयोग का मामला नहीं है, बल्कि यह व्यापक स्तर पर बड़े खतरे की वजह बन सकता है।
पूरी दुनिया में ड्रग रजिस्टेंट संक्रमण विज्ञानियों के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं। एंटीबायोटिक्स का बेतहाशा इस्तेमाल ऐसे संक्रमण का कारण बनता है। ज्यादा इस्तेमाल से सामान्य चोट और न्यूमोनिया जैसे सामान्य संक्रमण पर भी दवा का असर कम हो जाता है और ये संक्रमण जानलेवा बन जाते हैं।
भारत में जून से सितंबर, 2020 के बीच पहली लहर पीक पर थी। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस अवधि में एंटीबायोटिक्स की 21़6 करोड़ अतिरिक्त खुराक ली गई। एजिथ्रोमाइसिन की 3़8 करोड़ ज्यादा डोज लिए जाने का अनुमान है।
अध्ययन के दौरान जनवरी, 2018 से दिसंबर, 2020 के दौरान भारत में निजी क्षेत्रों में बिकी सभी एंटीबायोटिक दवाओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। 2020 में भारत में एंटीबायोटिक्स की 16़29 अरब खुराक बिकी। यह 2018 और 2019 से थोड़ा सा कम है।
ये आंकडे़ चिंता बढ़ाने वाले इसलिए हैं क्योंकि 2020 में कोरोना के कारण लगे लाकडाउन के चलते लोग घरों में थे। कहीं आना-जाना नहीं हो रहा था। मलेरिया और चिकुनगुनिया जैसे संक्रमण के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। ऐसे में एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल में भी कमी आनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं, अमेरिका और अन्य अमीर देशों में 2020 में एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई।

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