पर्वतीय क्षेत्रों में चलने वाले वाहनों का फिट होना जरूरी

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देहरादून। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि पर्वतीय क्षेत्रों में चलने वाले वाहनों का फिट होना जरूरी है। फिटनेस जांचने के लिए तकरीबन 10 वर्ष पूर्व स्वीकृत आटोमेटेड टेस्टिंग लेन अभी तक अस्तित्व में नहीं आ पाई है। हरिद्वार और हल्द्वानी में बनने वाली इस टेस्टिंग लेने के लिए बाकायदा बजट में व्यवस्था की जा चुकी है। कोरोना के कारण बीते वर्ष लागू लाकडाउन के बाद इस दिशा में अभी तक कार्य शुरू नहीं हो पाया है। प्रदेश में हर साल एक हजार से अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें औसतन 800 लोग अपनी जान गंवाते हैं। इन सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर वर्ष 2008 में एक सर्वे किया गया। इस सर्वे में यह बात सामने आई कि वाहनों की सही प्रकार से फिटनेस न होने के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में दुर्घटनाएं हो रही हैं। ऋषिकेश से ही अधिकांश पर्वतीय जिलों की यात्रा शुरू होती है। इसे देखते हुए परिवहन विभाग ने यहां आटोमेटेड टेस्टिंग लेन बनाने का निर्णय लिया। बताया गया कि इस लेन में वाहनों की फिटनेस आधुनिक मशीनों से की जाएगी। तत्कालीन सरकार ने भी इस पर सहमति देते हुए इसके लिए तीन करोड़ रुपये का प्रविधान किया। इसके बाद भूमि न मिलने के कारण इसका निर्माण नहीं हो पाया। इस बीच केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों में टेस्टिंग लेन बनाने के लिए आर्थिक मदद देनी शुरू की। उत्तराखंड ने भी केंद्र से दो स्थानों पर आटोमेटेड टेस्टिंग लेन बनाने को प्रस्ताव भेजा। केंद्र ने इस प्रस्ताव के सापेक्ष 16.5 करोड़ रुपये स्वीकृत किए। इसमें हल्द्वानी और देहरादून में दो-दो आटोमेटेड टेस्टिंग लेन बनाने का निर्णय लिया गया। दो टेस्टिंग लेन में से एक पर हल्के व एक पर भारी वाहनों की टेस्टिंग प्रस्तावित की गई। केंद्र ने इसके लिए सहमति देने के साथ ही यह कहा कि निर्माण में जो शेष खर्च आएगा, उसकी शेष राशि प्रदेश सरकार देगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने अब इसके लिए 10.28 करोड़ रुपये का प्रविधान बजट में किया। सिविल कार्यों के निर्माण का जिम्मा उत्तराखंड मंडी परिषद तो परियोजना के क्रियान्वयन के लिए एआरएआइ पुणे को नामित किया गया। उम्मीद जताई गई कि जल्द कार्य शुरू हो जाएगा मगर बीते वर्ष लाकडाउन और अब कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार के कारण निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

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