संपादकीय

शासकीय कर्मचारियों को चेतावनी

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वनाग्नि नियंत्रण मे आखिर राज्य सरकार का सख्त रवैया देखने को मिला है जिसके तहत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज की घटनाओं पर नियंत्रण पाने में लापरवाही दिखने पर 10 वन विभाग के कर्मचारियों को निलंबित किया है। यह चेतावनी है भविष्य के लिए ऐसे सभी कर्मचारियों के लिए जो वन अग्नि की घटनाओं को बेहद हल्के में लेते हैं और अपनी जिम्मेदारियां से बचने की कोशिश करते हैं। हालांकि ग्रीष्म ऋतु शुरू होने से पूर्व राज्य सरकार को वनग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए प्रयास करने चाहिए थे लेकिन उम्मीद नहीं थी कि इस बार वनों की आग इतना विकराल रूप धारण कर लेगी। निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री का यह कदम आपदा जैसी घटनाओं पर लापरवाही बरतने वालों के लिए एक सबक साबित होगा। जल्दी चार धाम यात्रा भी शुरू होने वाली है और इन परिस्थितियों में कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह व्यवस्था में किसी भी प्रकार से बचने की कोशिश ना करें अन्यथा सरकार दंडात्मक कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगी। एक कुशल और पारदर्शी प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि कर्मचारियों में अपने जिम्मेदारी का बोध होने के साथ-साथ शासन का भी थोड़ा भय होना चाहिए। इससे पूर्व भी हमेशा ग्रीष्म ऋतु में जंगलों में आग लगती आई है लेकिन कभी भी शीर्ष नेतृत्व की ओर से लापरवाही बरतने पर कर्मचारियों के खिलाफ ऐसा कदम देखने को नहीं मिला। प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए यह एक सुखद अवसर है कि मुख्यमंत्री धामी ने दूसरे राज्य में अपना चुनाव प्रचार बीच में छोड़कर प्रदेश के जंगलों में लगी आग को प्राथमिकता पर रखा और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के लिए उत्तराखंड लौट आए। निश्चित रूप से इसका आम जन मे सकारात्मक संदेश जायेगा और जनसहयोग से शीघ्र ही आग पर काबू पाया जा सकेगा। उत्तराखंड राज्य इस समय वनाग्नि की आपदा से ग्रस्त है, जिसका सामना करनें के लिए सरकार के साथ-साथ ग्रामीण भी समूचा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कहीं ना कहीं संसाधनों का अभाव नजर आया है जिसकी कमी भविष्य में पूरी करनी होगी। जंगल में आग की घटनाओं के सामने आने के बाद से ही सरकार और प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह सक्रिय हो कर इससे निपटने में जुटा है। वनों की आग पर नियंत्रण करने के कार्य में मुख्यमंत्री की बैठक के बाद तेजी देखने को मिली है और तमाम आपदा व्यवस्थाओं के लिए काम करने वाली एजेंसियां एक्शन मोड में है। भागीरथ प्रयासों के बावजूद अभी भी एक बड़ी आशा बरसात से ही बंधी हुई है क्योंकि मानवीय प्रयास चाहे जितने भी कर दिए जाएं प्राकृतिक तौर पर स्थाई समाधान बरसात ही है। आग पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार की ओर से जो एक और उत्साह जनक कदम उठाया गया है वह पिरोल की खरीद से जुड़ा हुआ है। सरकार ने अब पीरोल खरीदने का भी निर्णय लिया है जिसके तहत 50 रुपये किलो पीरूल की खरीद और 50 करोड़ का कारपस फंड बनाया जाएगा। जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने के लिए लापरवाही करने पर 17 अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही कार्य के प्रति गंभीरता समझने की प्रवृति पैदा करेगी। प्रदेश में आपदा जैसी परिस्थितियों को समझते हुए ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर सीएम का आग नियंत्रण की गतिविधियों को परखना और स्वयं कार्रवाई के लिए आगे आना प्रदेश की प्राकृतिक संपदा के प्रति सीएम की संवेदनशीलता को प्रदर्शित करता है। फिलहाल कुछ हद तक जंगलों की आग पर नियंत्रण पाने में सफलता मिली है लेकिन अभी बड़े प्रयास की जरूरत है जिसमें सबसे बड़ी आशा की किरण बरसात है। शीघ्र ही जंगल की आग के काबू में आने की उम्मीद दिखाई देने लगी है। जंगलों की आग से होने वाली प्राकृतिक संपदा एवं वन्य जीवों को होने वाले नुकसान की भरपाई कभी नहीं की जा सकती लेकिन इतना जरूर है कि प्रारंभिक स्तर पर प्रयास करने से ऐसी घटनाओं पर अंकुश जरूर लगाया जा सकता है।

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