सादगी से मनाया गया रम्माण मेला
चमोली। जोशीमठ के सलूड़ डुंगरा गांव में आयोजित रम्माण में मेले पर भी कोरोना का साया रहा। इसलिए इस बार मेला सादगी से मनाया गया। मेले में गांव के ही निवासियों ने भाग लिया। अमूमन प्रत्येक वर्ष रम्माण मेला 11 या फिर 13 दिन तक मनाया जाता है। परंतु इस साल कोविड-19 के चलते यह मेला सूक्ष्म रूप से आयोजित किया गया। सलूड़ डुंगरा में सुबह मेला आयोजन से पहले ग्रामीणों को हरियाली वितरित की गई। भूम्याल देवता की लाठ को पंचायत चौक में लाकर देवनृत्य का आयोजन किया। इस दौरान देवी देवताओं के पश्वाओं ने अवतरित होकर क्षेत्र की सुख, समृद्धि व खुशहाली का आशीर्वाद दिया। सलूड़ डुंग्रा गांव के निवासी भरत सिंह कुंवर ने बताया कि इस बार कोविड-19के चलते रम्माण मेले का आयोजन सूक्ष्म रूप से किया था।
रम्माण मेले का स्वरूप: चमोली जिले मे सलूड़ डुंग्रा गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में रम्माण मेले का आयोजन होता है। रम्माण मेला जोशीमठ के अन्य गांवों में भी होता है। मगर सलूड़ डुंग्रा के रम्माण को ख्याति उपलब्ध है। दो अक्टूबर 2009 को सलूड़ डुंग्रा गांव के रम्माण मेले को विश्व धार्मिक धरोहर घोषित किया गया। बताया जाता है कि यह मेला 500 साल से आयोजित होता आ रहा है। यह रामायण का अपभ्रंस माना जाता है। रम्माण मेले के दौरान 18 मुखौटे, 18 ताल, एक दर्जन जोड़ी ढोल दमाऊं, आठ भौंकरों के साथ मुखौटे पहनकर देवनृत्य आयोजित होता है। इस मेले में सूर्य, गणेश, राम, लक्ष्मण, सीता, बणिया बणियाण, मोर मोरिन, माल मल्ल नृत्य होता है। मेले में कुरु जोगी नृत्य खासा आकर्षण का केंद्र रहता है। इस नृत्य में हास्य कलाकार अपने पूरे शरीर पर चिपकने वाली घास कुरु को लगाकर जनता के बीच जाता है। कुरु लगने की डर से जनता भागती है। यह हास्य नाटक माना जाता है। रम्माण मेले को विश्व धरोहर घोषित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गांव के शिक्षक कुशल सिंह भंडारी ने बताया कि भविष्य में बेहतर तरीके से इस मेले का आयोजन किया जाएगा। मेला भूम्याल देवता की वार्षिक पूजा अनुष्ठान का मौका भी होता है। भूम्याल देवता की इस दौरान अन्य देवी देवताओं से भेंट होती है।