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हम सबको जुटकर हिमालय के संरक्षण का आह्वान करना है: डा. अनिल जोशी

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देहरादून। हम हिमालय दिवस के 11वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि यह एक साथ इसे पर्व समझने की 11वीं वर्षगांठ है। हम हिमालय दिवस को एक उत्सव के रूप में देखने की कोशिश करेंगे तो बहुत सी आलोचनाओं, तर्क-वितर्क से हटकर इस महान पर्वत श्रेणी के नमन में भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। अक्सर हम ऐसे कार्यक्रमों में कई तरह के वाद-विवाद में फंस जाते हैं। हमें ऐसा भी सोचना चाहिए कि जब हम होली, दीवाली, रक्षाबंधन व अन्य तरह के पर्व मनाते हैं तो हम इनके अन्य पहलुओं को न देखते हुए उत्साह में लीन होकर अपने दिवस को प्रणाम करते हैं।
शायद यह भी आज एक समय है कि जब हिमालय दिवस को अन्य चर्चाओं का हिस्सा न बनाते हुए मिलकर इसे आनंदमयी बनाएं। पिछले कुछ समय में हिमालय की प्रकृति और पारिस्थितिकी पर कई तरह के हमले हुए है। लिहाजा, हम सबको जुटकर हिमालय के संरक्षण का आह्वान करना है।यह कैसे मान लिया जाए कि ये किसी व्यक्ति, संगठन अथवा सरकार विशेष का ही दायित्व है। हिमालय को सब भोगते हैं, इसलिए सबको ही इसके सरंक्षण में भी जुटना चाहिए। आईपीसीसी की वर्तमान रिपोर्ट के मुताबिक अगले 20 वर्ष हम सबके लिए सामूहिक रूप से बेहतर नहीं होने वाले हैं और उसमें भी हिमालय के हालात और गंभीर होने की संभावना जताई गई है। इसलिए हिमालय का मुद्दा मात्र सामाजिक संगठनों या सरकारों का ही दायित्व नहीं होना चाहिए, बल्कि सब लोग एकजुट होकर हिमालय के प्रति अपना धर्म निभाएं।
अगर हम पिछले 10 वर्षों को देखें तो जहां इस दिन कई चर्चाएं हुईं तो उत्सव व उत्साह भी दिखा। स्कूल के बच्चों से लेकर संस्थानों, संगठनों, सरकारों ने पूरे उत्साह के साथ यह दिवस मनाया है। यह सत्य है कि हमेशा इस तरह के प्रयत्नों के बीच में से ही सामूहिकता पनपती है। जिस तरह से हम अपने पर्वों की प्रतीक्षा करते हैं, तैयारियां करते हैं और उसमें जुड़ते हैं तो स्वतº हम उसका हिस्सा बन जाते हैं। इसलिए हिमालय दिवस को औपचारिकता वाला अवसर न समझें। ऐसा लेखा-जोखा जुटाने की भी कोशिश नहीं की जानी चाहिए कि इससे क्या हुआ। अगर हम हिमालय दिवस को उत्सव ही समझ लें तो इसके प्रति आदर भी पैदा करेंगे और इसकी निरंतरता के प्रति भी भाव रखेंगे।
हिमालय दिवस मनाने और इसे पर्व समझने वाले लोगों का हमें नमन करना चाहिए कि ये आने वाली पीढ़ी के लिए एक ऐसी नीव रख रहे हैं जो हिमालय को याद और इसके महत्व को बताने का काम करेगी। अन्यथा, हमारे पास ऐसा कोई भी कारण नहीं दिखता कि हम इस पर्वत श्रेणी को नमन करें और इसकी स्तुति करें। हिमालय दिवस कम से कम इन 10 वर्षों में हिमालय को सामूहिक रूप से याद करने का कारण बना है। – पद्मभूषण डा. अनिल जोशी।

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