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भारत ने क्यों जारी किया पाकिस्तान को नोटिस, क्या सिंधु समझौते से अलग हो सकते हैं हम?

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नई दिल्ली , एजेंसी। सिंधु जल संधि के चर्चा में आने का कारण है संधि में संशोधन को लेकर भारत द्वारा पाकिस्तान को जारी किया गया नोटिस। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है।
दुनिया की सबसे उदार संधि कही जाने वाली सिंधु जल संधि में एक संशोधन को लेकर भारत सरकार ने पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। सरकार ने कहा है कि पाक की कार्रवाइयों ने सिंधु संधि के प्रावधानों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस वजह से भारत को नोटिस जारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यह नोटिस जम्मू और कश्मीर में भारत की दो पनबिजली संयंत्रों – किशनगंगा (330 मेगावाट) और रातले (850 मेगावाट) पर दोनों देशों के बीच असहमति के बाद आया है।
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक द्विपक्षीय समझौता है। यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 में कराची में हुई थी। इस संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। संधि के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी।
इस संधि के अनुसार भारत और पाकिस्तान के बीच छह नदियों के पानी का बंटवारा होता है। इन नदियों में व्यास, रावी, सतलज, झेलम, चिनाब और सिंधु नदियां शामिल हैं। इस समझौते के अनुसार पूर्वी क्षेत्रों की नदियों व्यास, रावी और सतलज कर नियंत्रण का अधिकार भारत को मिला। भारत इन नदियों से विद्युत निर्माण, सिंचाई और जल संसाधन से जुड़ी कई योजनाओं को संचालित कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर पश्चिमी क्षेत्रों की नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम पर नियंत्रण के अधिकार पाकिस्तान को दिया गया। पाकिस्तान में इन्हीं नदियों के पानी से बिजली निर्माण और सिंचाई के काम किए जाते हैं।
इस संधि के कारण भारत, पाकिस्तान को कुल जल का 80़52: यानी 167़2 अरब घन मीटर पानी सालाना देता है। यही कारण है कि यह दुनिया की सबसे उदार संधि कही जाती है।
इस संधि के टूटने से पाकिस्तान के एक बड़े भूभाग पर रेगिस्तान बनने का खतरा मंडराने लगेगा। इसके अलावा अगर इस संधि को तोड़ा जाता है तो पाकिस्तान पर बहुत बड़ा कूटनीतिक दबाव पड़ सकता है। इसके साथ ही पाकिस्तान में संचालित हो रही अरबों रुपये की विद्युत परियोजनाएं भी बंद होने की कगार पर आ जाएंगी और करोड़ों लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल पाएगा।
सिंधु जल संधि में विवाद भारत की दो पनबिजली परियोजनाओं को लेकर है। दरअसल, सिंधु की सहायक नदियों पर बनने वाली 330 मेगावाट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना का निर्माण 2007 में शुरू हुआ था। इसी बीच 2013 में चिनाब पर बनने वाले रातले पनबिजली संयंत्र की आधारशिला रखी गई थी। पाकिस्तान ने इन दो परियोजनाओं का विरोध किया और कहा कि भारत ने सिंधु जल संधि का उल्लंघन किया है। किशनगंगा परियोजना को लेकर पाकिस्तान ने दावा किया कि इसके कारण पाकिस्तान में बहने वाले पानी रुकता है।
2015 में, पाकिस्तान इस मुद्दे को लेकर विश्व बैंक पहुंच गया और किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की मांग की। अगले ही साल, पाकिस्तान ने अनुरोध वापस ले लिया और अपनी आपत्तियों पर निर्णय लेने के लिए मध्यस्थता अदालत की मांग की। 2017 में, विश्व बैंक ने कहा कि भारत को 1960 की संधि के तहत कुछ प्रतिबंधों के साथ झेलम और चिनाब नदियों की सहायक नदियों पर पनबिजली सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति है। मई 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किशनगंगा परियोजना का उद्घाटन किया।
सिंधु जल संधि के चर्चा में आने का कारण है संधि में संशोधन को लेकर भारत द्वारा पाकिस्तान को जारी किया गया नोटिस। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, नोटिस इस्लामाबाद द्वारा संधि को लागू करने को लेकर अपने रूख पर अड़े रहने के कारण जारी किया गया है। नोटिस सिंधु जल संबंधी आयुक्तों के माध्यम से 25 जनवरी को भेजा गया। पारस्परिक रूप से सहमत तरीके से आगे बढ़ने के लिए भारत द्वारा बार-बार प्रयास किए गए। इसके बावजूद, पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया। पाकिस्तान के आग्रह पर, विश्व बैंक ने हाल ही में तटस्थ विशेषज्ञ और कोर्ट अफ आर्बिट्रेशन प्रक्रियाओं दोनों पर कार्रवाई शुरू की है। समान मुद्दों पर इस तरह के समानांतर विचार सिंधु जल समझौते के किसी भी प्रावधान के अंतर्गत नहीं आते हैं।
दोनों देशों के पास इस संधि से अलग होने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। संधि का अनुच्टेद 12(4) संधि को समाप्त करने का अधिकार तभी देता है जब दोनों देश लिखित रूप से सहमत हों। दूसरे शब्दों में, संधि को समाप्त करने के लिए, दोनों देशों द्वारा एक संधि समाप्ति का मसौदा तैयार करना होगा। संधि में एकतरफा श्निलंबनश् का कोई प्रावधान नहीं है। संधि दोनों देशों पर समान रूप से बाध्यकारी है और इसमें बाहर निकलने का कोई भी प्रावधान नहीं है। संधि की कोई निश्चित अवधि भी नहीं है। इसके आलावा सत्ता परिवर्तन के साथ इसे समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसे में भारत और पाकिस्तान दोनों का इस संधि से अलग होना मुश्किल है।

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