क्या लोन लेना हो जाएगा और महंगा?
नई दिल्ली,एजेंसी। आरबीआइ गवर्नर की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक के फैसलों की घोषणा शुक्रवार (05 अगस्त, 2022) को होगी। माना जा रहा है कि एमपीसी सदस्यों के बीच रेपो रेट में 0़35 फीसद से 0़50 फीसद की वृद्घि करने की सहमति बन जाएगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो जाएगा कि देश में ब्याज दरों की स्थिति कोविड के पहले वाले दौर में पहुंच जाए। वैश्विक स्तर पर महंगाई के खतरे के बीच मई में आरबीआई ने रेपो रेट में 0़40 फीसद और जून, 2022 में 0़50 फीसद की वृद्घि की थी। यह दर अभी 4़90 फीसद है जबकि मार्च, 2020 में रेपो रेट 5़15 फीसद थी।
कोविड महामारी के आर्थिक दुष्प्रभाव को काटने के लिए तब एमपीसी ने एकमुश्त रेपो रेट में 0़75 फीसद की कटौती की थी। रेपो रेट वह दर होता है, जो बैंकों को उनके अतिरिक्त फंड आरबीआइ के पास जमा करने पर मिलता है। बैंकिंग सिस्टम में अतिरिक्त फंड को सोखने के लिए आरबीआइ इसमें वृद्घि करता है। बेहतर रिटर्न की वजह से बैंक इसमें पैसा रखना ज्यादा मुनासिब समझते हैं।
रेपो रेट के आधार पर ही बैंकों की तरफ से खुदरा लोन व व्यक्तिगत लोन की दरें तय होती हैं। रेपो रेट बढ़ने से कर्ज महंगा हो जाता है और कम लोग कर्ज लेते हैं। इससे मांग कम होती है जिसका असर महंगाई को कम करने पर दिखता है। महंगाई के ताजे आंकड़े बताते हैं कि मई 2022 के मुकाबले जून 2022 में महंगाई की दर घट कर 7 फीसद पर आई है, लेकिन अभी भी यह आरबीआइ की तरफ से तय अधिकतम सीमा 6 फीसद से ज्यादा है। बता दें कि भारत ही नहीं दुनिया भर के केंद्रीय बैंक अभी महंगाई को थामने के लिए ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी कर रहे हैं।
28 जुलाई को अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने 75 आधार अंकों की वृद्घि की है, तो गुरुवार (4 अगस्त) को इंग्लैंड के केंद्रीय बैंक ने प्रमुख उधारी दर में 0़50 फीसद की बढ़ोतरी की है। वैसे भारत में महंगाई की स्थिति कई दूसरे देशों के मुकाबले नियंत्रित दिखती है। यही वजह है कि अधिकांश जानकार मानते हैं कि शुक्रवार को आरबीआइ की तरफ से होने वाली वृद्घि हाल-फिलहाल रेपो रेट में की गई अंतिम वृद्घि हो सकती है।