पूर्णाहुति के साथ यज्ञ एवम श्रीमद्देवी भागवत कथा का विराम

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गोपेश्घ्वर। लक्ष की यज्ञ में एक लाख मंत्रोच्चारों और आहुतियों के साथ ही सोमवार को मंडल में अनसूया रथ डोली मंदिर परिसर में आयोजित लक्ष यज्ञ प्रधान आचार्य ड प्रदीप सेमवाल द्वारा मंत्र युक्त पूर्णाहुति के साथ संपन्न हुआ। यज्ञ के साथ ही देवी भागवत कथा का भी विराम हुआ।
यज्ञ की पूर्णाहुति से पूर्व श्रीमद भागवत कथा में आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने कहा मूल प्रति स्वरुपिणी भुवनेश्वरी से सृष्टि के समय दो शक्तियां आविर्भूत हुई। जो भगवान श्रीष्ण की प्राण वृद्घि की अधिष्ठात्री देवी हैं। साथ ही वे समस्त सृष्टि की समष्टि व्यष्टि की प्राण व्रद्घि की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे ही सबकी नियंत्रण पूरक प्रेरिका भी हैं इनके अधीन ही सम्पूर्ण जगत है। आचार्य ममगाईं ने कहा कि जहां जन्म है वहां कर्म है, जीवन कर्म का ही व्यर्थ पर्याय है। जन्म के साथ ही कर्मो का आरम्भ होता है और मृत्यु के साथ वे समाप्त हो जाते हैं। इसलिए जीवन ही कर्म है व मृत्यु कर्म का अभाव है मृत्यु के बाद चित पर उनकी स्मृतियां शेष रह जाती हैं जो कई वासनाओं को जन्म देती है। यही नए जन्म का कारण है। भोलादत सती प्राचार्य संस्त महाविद्यालय मण्डल, मनोहर सेमवाल, हरि प्रसाद सती, भगत सिंह बिष्ट (अध्यक्ष अनसूया मंदिर समिति) द्गिम्बर विष्ट, सचिव विनोद सिंह, नंदन सिंह राणा, हरि प्रसाद सती, विपुल राणा, रामेश्वरी भट्ट, विनोद सेमवाल, राजेंद्र सेमवाल, सतेश्वरी सेमवाल, जगमोहन राणा, रामेश्वरी भट्ट, लज्जावती देवी आदि शामिल रहे।

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