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गौथिक शैली में बना है नैनीताल हाईकोर्ट का भवन

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नैनीताल। जिस भवन में हाईकोर्ट संचालित है वह न केवल ऐेतिहासिक है, बल्कि कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण भी है। स्थापना के बाद से अब तक यह भवन वर्न्स डेल स्टेट से लेकर हाईकोर्ट तक का गवाह बन चुका है लेकिन विडंबना है कि कोई भी दफ्तर या संस्थान यहां स्थायी नहीं रह सका है। यह भवन गौथिक शैली में बना हुआ है।
प्रसिद्घ इतिहासकार प्रो़ अजय रावत बताते हैं कि मल्लीताल क्षेत्र में वर्ष 1862 में इस भवन की स्थापना हुई। तब यह क्षेत्र वर्न्स डेल स्टेट के नाम से जाना जाता था जबकि स्टेट के संचालकों का मुख्य दफ्तर यहां माल रोड पर होता था। प्रो़ रावत के मुताबिक, वर्ष 1898 में नैनीताल में राजभवन की स्थापना हुई। राजभवन बनने के बाद इस भवन का उपयोग अंग्रेज अधिकारियों ने सचिवालय के रूप में करना शुरू कर दिया। वर्ष 1900 में सचिवालय पूरी तरह इस भवन में शिफ्ट हो चुका था।
प्रो़ रावत के मुताबिक, ब्रिटिशकाल में यह सचिवालय भवन था। वर्ष 1961 में नैनीताल से ग्रीष्मकालीन राजधानी वापस लखनऊ स्थानांतरित हो चुकी थी और सचिवालय भवन के अधिकांश कमरे खाली हो गए थे। उसके बाद प्रदेश सरकार ने इस भवन का उपयोग विकास योजनाओं समेत अन्य कार्यालयों के लिए करना शुरू किया।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1973 में इस क्षेत्र के एक बड़े हिस्से का अधिकार कुमाऊं मंडल विकास निगम को मिल गया। इसके बाद निगम समेत पर्यटन विभाग के दफ्तर भी यहीं स्थापित हो गए। नौ नवंबर 2000 को अलग राज्य बनने के बाद यहां हाईकोर्ट की स्थापना हुई। न्यायमूर्ति अशोक देसाई उत्तराखंड हाईकोर्ट के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। शुरुआत में हाईकोर्ट में सात न्यायाधीश कार्यरत थे जबकि उसके बाद न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर नौ कर दी गई थी।
प्रदेश की भाजपा सरकार ने हाईकोर्ट को नैनीताल से हल्द्वानी शिफ्ट करने संबंधी फैसले को सैद्घांतिक स्वीति दे दी है। सरकार के इस फैसले के बाद अब देर सवेर हाईकोर्ट का हल्द्वानी शिफ्ट होना तय है। ऐसे में इस ऐतिहासिक भवन का उपयोग किस कार्य के लिए किया जाएगा। इसे लेकर शहर में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। जानकारों का कहना है कि यदि हाईकोर्ट शिफ्ट होता है तो इस भवन का उपयोग किसी अच्टे इंस्टीट्यूट के लिए किया जाना चाहिए।
हम तो पहले नैनीताल में राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे लेकिन हमें हाईकोर्ट मिला। हाईकोर्ट बनने से लोगों को रोजगार भी मिला था। इसे शिफ्ट करने से पहले लोगों और अधिवक्ताओं की राय ली जाती तो ज्यादा बेहतर होता। -सरिता आर्या विधायक नैनीताल।
सरकार का हाईकोर्ट शिफ्ट करने का फैसला गलत है। जल्द ही इस संबंध में पूर्व सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता डा़ महेंद्र सिंह पाल के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल केंद्रीय कानून मंत्री से मिलेगा। -प्रशांत जोशी, उपाध्यक्ष, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन नैनीताल।
हाईकोर्ट को नैनीताल से शिफ्ट करने का फैसला उत्तराखंड विरोधी और अलग पर्वतीय राज्य की अवधारणा के खिलाफ है। इससे पहाड़ से पलायन बढ़ेगा और तराई भाबर की षि योग्य भूमि भी घटेगी। सरकार का यह फैसला पहाड़ से पलायन को बढ़ाएगा। -डा़ महेंद्र सिंह पाल, पूर्व सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता हाईकोर्ट नैनीताल।
हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने से पहले सरकार को अधिवक्ताओं से रायशुमारी करनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने ऐसा करना उचित नहीं समझा। अब जबकि हाईकोर्ट शिफ्ट हो रहा है तो इस परिसर में कुमाऊं विश्वविद्यालय का विधि संस्थान स्थापित किया जाना चाहिए। -सचिन नेगी पालिकाध्यक्ष नैनीताल।

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