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राज्य में गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा संस्थान गठित न होने पर जताई नाराजगी

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जयन्त प्रतिनिधि।
पौड़ी।
उत्तराखंड राज्य गठन के 21 वर्षों में पृथक गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा संस्थान नहीं बनाए जाने पर गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक से संस्थान गठन में दखल देते हुए निर्माण कार्य जल्द शुरु किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा में सृजित साहित्य के संकलन को आज तक कोई व्यवस्था सरकार नहीं कर पाई है। जिससे इस भाषा की अमूल्य धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुंचाने, सुरक्षित रखे जाने और आम जनमानस के साथ ही शोधार्थियों तक पहुंचानें में हम पूरी तरह विफल रहे हैं।

उत्तराखंड की दुधबोली गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा को देश की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने को लेकर लंबे समय से कवायद चल रही है। इस भाषा की लंबी सृजन यात्रा को संकलित किए जाने व पृथक गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा संस्थान बनाए जाने की मांग तेज हो गई है। प्रसिद्घ गढ़वाली साहित्यकार नरेंद्र कठैत ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र भेज उत्तराखंड में पृथक गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा संस्थान बनाए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि दोनों भाषाओं में 16वीं शताब्दी से ताम्रपत्रों, प्राचीन लेखों और असंख्यक दस्तावेजों में अमूल्य साहित्य सृजन हुआ है। वैदिक व संस्कृत के सन्निकता होने के कारण इन भाषाओं ने हिंदी ही नहीं, बल्कि अन्या भाषाओं की समृद्घि में भी अहम योगदान दिया है। 16वीं शताब्दी से लेकर वर्तमान तक की गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा में सृजित साहित्य को संकलित किए जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार विगत 21 वर्षों में ठोस प्रयास करने में विफल रही है। कठैत ने कहा कि सभा-समितियों में प्रस्ताव या भाषणों से इतर हमें एकजुटता के साथ आगे आकर कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि कला-साहित्य-संस्कृति की मूल विचाधारा के आधार पर गठित राज्य की मूल भाषाओं को सह-भाषा की श्रेणी में रखना चिंताजनक है। गढ़वाली-कुमाऊंनी उत्तराखंड की सह नहीं मुख्य भाषाएं हैं।

दिवंगत साहित्यकारों के सृजन से विमुखता क्यों
पौड़ी।
प्रदेश में गढ़वाली साहित्य में अहम योगदान देने वाले दिवंगत साहित्यकारों के सृजित साहित्य को संहेजने में सरकार कोई रुचि नहीं ले रही है। जिससे यह साहित्य विलुप्ति के कगार पर खड़ा होता जा रहा है। कठैत ने कहा कि शिवराज सिंह रावत निसंग, सुदामा प्रसाद प्रेमी, बी. मोहन नेगी, शिव प्रसाद डबराल चारण जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों का निधन हो गया है। लेकिन इनके सृजित साहित्य को संकलित ही नहीं किया जा रहा है।

साहित्य अकादमी गढ़वाली-कुमाऊंनी को मानती है भाषा
पौड़ी।
गढ़वाली कवि नरेंद्र कठैत ने कहा कि साहित्य अकादमी गढ़वाली-कुमाऊंनी को भाषा मानती है। अकादमी इन भाषाओं में सम्मेलन आयोजित करने के साथ ही दो-दो साहित्यकारों को पुरुस्कार भी प्रदान कर चुकी है।

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