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सीएपीएफ: सीमा पर चौकसी और आतंकियों-नक्सलियों से लड़ने वाले 11 लाख जवान अब पालेंगे मधुमक्खियां! करेंगे योग भी

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नई दिल्ली, एजेंसी। केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीएपीएफ’ में अनेक नई गतिविधियां देखने को मिल रही हैं। सीमा पर पहरेदारी की ड्यूटी हो या आतंकियों और नक्सलियों के खिलाफ मुठभेड़, इनके अलावा भी सीएपीएफ जवान, कई तरह की ड्यूटी को अंजाम देते हैं। इसमें निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण चुनाव, कानून व्यवस्था, आपदा के दौरान संकटमोचक बनना और विभिन्न क्षेत्रों में सिविक एक्शन प्रोग्राम के माध्यम से लोगों की सहायता करना, आदि शामिल है। कई वर्ष पहले सीआरपीएफ को रिमोट एरिया में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रगति रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पिछले दिनों सीएपीएफ को अपनी तैनाती वाले भौगोलिक क्षेत्र में इतिहास की विस्तृत जानकारी एकत्रित करने के लिए कहा गया था। अब एक नई जिम्मेदारी सामने आ रही है। इस बाबत केंद्रीय गृह मंत्रालय में तीन अक्तूबर को अहम बैठक होगी। उसमें सीएपीएफ के लिए मधुमक्खी पालन का मॉडयूल पेश किया जाएगा।
विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय में तीन अक्तूबर को होने वाली बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृह सचिव करेंगे। उस बैठक में केंद्रीय अर्धसैनिक बल, असम राइफल और एनएसजी के परिसरों में वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी पालने के तरीकों पर विचार होगा। सभी परिसरों में मधुमक्खी पालन कैसे बढ़े, इसके लिए कई तरह के सुझावों पर चर्चा की जाएगी। इसके साथ ही केंद्रीय अर्धसैनिक बलों, असम राइफल और एनएसजी परिसरों में ‘योग’ को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयासों पर चर्चा होगी। इस दौरान कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन’ के कार्यकारी निदेशक द्वारा पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया जाएगा। इस बैठक में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव, आयुष मंत्रालय के सचिव, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल व एनएसजी के महानिदेशक मौजूद रहेंगे। इनके अलावा डीजी आईसीएआर, चेयरमैन केवीआईसी और राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन बोर्ड के कार्यकारी निदेशक भी उपस्थित होंगे।
केंद्र सरकार, सैन्य जवानों को भी सोशल सर्विस और सरकारी स्कीम का प्रचार करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। हालांकि इस तरह की गतिविधियां उन्हें छुट्टी के दौरान करनी होंगी। सरकार का मकसद है कि जवानों को सामाजिक सेवा से जोड़ा जाए। एडजुटेंट जनरल की ब्रांच के अंतर्गत सेना के समारोह और कल्याण निदेशालय द्वारा गत मई में इस बाबत पत्राचार किया गया था। सभी कमांड मुख्यालयों के साथ हुए पत्राचार में कहा गया था कि जवान अपनी छुट्टियों का बेहतर इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। वे सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकते हैं। किस विषय पर जवान, काम करना चाहेंगे, वह क्षेत्र वे खुद ही तय कर सकते हैं। वे जो भी अभियान शुरु करें, उसका फीडवैक अवश्य दें।
देश के दूरवर्ती इलाके, जहां पर नक्सलवाद की छाया है या वे आतंकवाद से प्रभावित हैं, वहां पर केंद्र सरकार की योजनाओं का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की जिम्मेदारी, सीआरपीएफ को सौंपी गई थी। उत्तर पूर्व के ऐसे राज्य जहां किसी उग्रवादी समूह या दूसरी बाधाओं के चलते सरकारी योजनाएं आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं, वहां पर सीआरपीएफ जवानों द्वारा घर-घर पहुंचकर लोगों से योजना की प्रगति रिपोर्ट लेने की बात कही गई थी। बल को सौंपे गए कार्यों में सरकारी योजनाओं पर फोकस किया जाना था। जैसे, केंद्र की कोई योजना, लोगों तक पहुंची है या नहीं। उन्हें किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। योजना के लिए उन्हें कौन सा फार्म भरना चाहिए और उसके बाद अगला कदम क्या होगा, यह मदद करने के लिए सीआरपीएफ के जवानों को लोगों के पास जाने के लिए कहा गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 12 जून को नई दिल्ली में आयोजित चिंतन शिविर-2 की अध्यक्षता करते हुए कई अहम सुझाव दिए थे। अब सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में उन सुझावों को त्वरित गति से लागू करने की तैयारी हो रही है। सीएपीएफ की सभी यूनिटों को वह सूची भेज दी गई थी, जिस पर उन्हें अमल करना है। सीएपीएफ कर्मी, अपने मुख्यालय, रेंज, ग्रुप केंद्र, बटालियन, कंपनी और प्लाटून/पोस्ट, जहां भी तैनात हों, वहां के भौगोलिक क्षेत्र के इतिहास की विस्तृत जानकारी एकत्रित करेंगे। इसके बाद इतिहास का दस्तावेज भी तैयार करना होगा। सीमा की सुरक्षा का मतलब केवल बॉर्डर की रक्षा नहीं है, बल्कि उसे स्थानीय जिले की कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा माना है। अगर सीएपीएफ को धार्मिक अतिक्रमण की कोई जानकारी मिलती है, तो वहां स्थानीय प्रशासन की इजाजत से त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी। भौगोलिक क्षेत्र के इतिहास की विस्तृत जानकारी एकत्रित कर दस्तावेज तैयार करना है। इस जानकारी के आधार पर उस क्षेत्र की भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन करें। इस तरह की जानकारियां, उस इलाके के इतिहास को जानने के प्रोफेशनल काम में मददगार साबित होंगी।

 

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