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अपराध के वक्त नाबालिग घोषित 13 कैदियों को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत, भुगत चुके हैं 14 से 22 साल की कैद

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नई दिल्ली, एजेंसी। अपराध के समय 18 वर्ष से कम आयु यानी किशोर (नाबालिग) होने के आधार पर रिहाई मांग रहे आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 कैदियों को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) बोर्ड ने अपनी जांच में इन कैदियों को अपराध के वक्त नाबालिग यानी किशोर घोषित किया है। हालांकि बोर्ड का आदेश आने तक हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए ये 13 कैदी 14 से 22 साल तक की सजा भुगत चुके हैं।
गुरुवार को जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी़ रामासुब्रामण्यम की पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलाषि मल्होत्रा और उत्तर प्रदेश सरकार की वकील गरिमा प्रसाद की दलीलें सुनने के बाद सभी 13 कैदियों को अंतरिम जमानत पर निजी मुचलके पर तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने अपने आदेश में घोषित किया है कि ये 13 याचिकाकर्ता अपराध के वक्त किशोर थे।
कोर्ट ने गरिमा प्रसाद से कहा कि अगर ये सभी तीन साल से ज्यादा की कैद काट चुके हैं तो इन्हें रिहा किया जाना चाहिए। प्रसाद ने कहा कि प्रदेश सरकार ने प्रथमदृष्टया पाया है कि जेजे बोर्ड ने अपने आदेश में इन सभी को अपराध के वक्त किशोर होना पाया है। ऐसे में राज्य सरकार को इन्हें अंतरिम जमानत दिए जाने पर आपत्ति नहीं है। सभी के खिलाफ अलग-अलग मामले हैं और उनके बारे में अदालत के अलग आदेश हैं, ऐसे में केस की मेरिट पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए सरकार को दो सप्ताह का समय दिया जाए।
कोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह का समय दे दिया और एक सप्ताह का समय याचिकाकर्ता को प्रतिउत्तर के लिए दिया है। उसके बाद मामले पर फिर सुनवाई होगी। इससे पहले याचिकाकर्ताओं की तत्काल रिहाई मांगते हुएाषि मल्होत्रा ने कहा कि जेजे बोर्ड इन्हें अपराध के वक्त किशोर ठहरा चुका है, ऐसे में इनकी हिरासत गैरकानूनी है। जेजे एक्ट सिर्फ तीन साल की सजा का प्रावधान करता है।
याचिका के मुताबिक, इन 13 कैदियों को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। ज्यादातर की अपील भी हाई कोर्ट में लंबित है। इनके मामलों में नया मोड़ तब आया जब हाई कोर्ट में 2012 एक जनहित याचिका दाखिल हुई जिसमें कहा गया कि प्रदेश की जेलों में बंद बहुत से कैदी अपराध के वक्त किशोर थे। हाई कोर्ट ने इस पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को जेल में बंद कैदियों की उम्र की जांच करने का आदेश दिया।
बोर्ड ने जांच कर समय-समय पर रिपोर्ट दीं और 2017 से छह मार्च, 2021 तक अलग-अलग रिपोर्टें आईं जिनमें याचिकाकर्ता 13 कैदियों को अपराध के वक्त 18 वर्ष से कम आयु का घोषित किया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जुवेनाइल घोषित किए जाने के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया गया। याचिका में टीकम, अमित, असगर, बबलू, शाहिद, भोला, फुरकान, तेजू, वलीउद्दीन, सोनू, सतवीर, पिंटू और आदिल की रिहाई मांगी गई है। पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था।

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