उत्तराखंड

उत्साह के साथ मनाया गया लोकपर्व खतड़वा

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पिथौरागढ़। सीमांत में खतड़वा का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। पर्व को लेकर महिलाओं व बच्चों में खासा उत्साह नजर आया। सभी सुबह से ही घास व लकड़ियों से पुतला बनाने के साथ ही घास से तैयार बूढ़ी को सजाने में जुटे रहे। सुख-समृद्घि की कामना के साथ देर शाम बूढ़ी के साथ खतड़वा को जलाया गया। सीमांत में सुख-समृद्घि के साथ ही पशुओं की महत्ता का प्रतीक खतड़वा लोक पर्व उत्साह के साथ मनाया गया। सुबह से जिले भर के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं व बच्चे इसकी तैयारियों में जुटे रहे। महिलाओं ने विशेष घास से बूढ़े व बूढ़ी की प्रतिमा तैयार की जिन्हें रंग-बिरंगे पारंपरिक फूलों से सजाया गया। इस प्रतिमा को गोबर के ढेर पर रोपित किया गया। वहीं बच्चे लकड़ियों व घास-फूस को एकत्र कर खतड़वा का पुतला बनाने में जुटे रहे। देर शाम सभी ने उत्साह के साथ बूढ़ी व खतड़वा को जलाया। कुमाऊं में खतड़वा पशुओं के नाम पर मनाया जाने वाला लोकपर्व है। आश्विन संक्रांति के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व को गौ-त्यार भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार बारिश में गाय व अन्य पशुओं को कई तहर की बीमारियां होती हैं। पशुओं की इन्हीं रोगों व व्याधियों को दूर करने के उद्देश्य से खतड़वा मनाया जाता है। कई जगह लोगों ने खतड़वा व बूढ़ी जलाने के बाद राख का टीका लगाया। वहीं पशुओं को इस राख का टीका लगाकर सुख-समृद्घि की कामना की। खतड़वा जलाने के बाद ककड़ी को प्रसाद के रूप में बांटा गया।

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