सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों पर लगाई रोक
नई दिल्ली, एजेंसी। नए कृषि कानून की वापसी को लेकर पिछले करीब दो महीनों से हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। इस पूरे मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि कानूनों के अमल होने पर अभी रोक लग गई है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार-किसान संगठनों में कोई समझौता न होते देख, ये सख्त फैसला लिया और एक कमेटी का गठन कर दिया। अब कमेटी ही अपनी रिपोर्ट अदालत को देगी, जिसपर आगे का फैसला होगा। आइए एक नजर डालते है सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किस पक्ष को क्या मिलता दिख रहा है, आगे क्या हो सकता है?
किसानों और सरकार के बीच करीब आठ राउंड की बात हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। साथ ही कई मौकों पर दोनों पक्षों में सख्ती देखी गई, ऐसे में अब जब सुप्रीम कोर्ट की कमेटी बनी है तो सरकार-किसानों के बीच बना हुआ गतिरोध टूटेगा और किसी निर्णय की ओर आगे बढ़ते दिखेंगे।
अदालत द्वारा बनाई गई कमेटी सभी पक्षों से बात करेगी, चाहे कानून समर्थक हो या विरोधी। ऐसे में अगर कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट कानून के समर्थन में आती है, तो सरकार का पक्ष मजबूत होगा सरकार को बड़ा लाभ ये भी हुआ है कि अभी कृषि कानून वापस नहीं लेना होगा। क्योंकि कमेटी अब लागू किए गए कानून पर विस्तार से मंथन करेगी, हर क्लज पर अपनी राय देगी। ऐसे में सरकार जिन संशोधनों की बात कर रही थी, उससे भी काम चल सकता है। कृषि कानून का विरोध जबसे शुरू हुआ है, सरकार इसका काउंटर करने में लगी रही। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर सीधे किसानों को संबोधित किया और इन कानूनों को कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा सुधार बताया। पीएम मोदी ने किसानों को विपक्ष की बातों में ना आने को कहा, लेकिन सरकार की दलील कोर्ट में ना चली और आखिरकार कानूनों पर रोक लग गई।
किसान लंबे वक्त से सरकार के साथ बात कर रहे थे, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा था। साथ ही किसान ऐसा संदेश नहीं देना चाहते थे कि वो सरकार के सामने झुक गए हैं। अब जब अदालत ने इसमें दखल दिया है तो कमेटी की रिपोर्ट और अदालत के आदेश के हिसाब से आंदोलन अंत की ओर बढ़ सकता है। ऐसे में सरकार के दबाव में आए बिना भी किसान अपना आंदोलन खत्म कर सकते हैं।
किसान संगठन लंबे वक्त से कानून वापसी की अपील कर रहे हैं, सरकार के संशोधन और कमेटी के प्रस्ताव को वो ठुकरा चुके थे। लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कमेटी बनाने और हल निकालने की बात कही है तो किसान संगठनों को अपनी जिद छोड़कर कमेटी के सामने जाना ही होगा। कमेटी के सामने किसान पेश होंगे या नहीं, इसको लेकर किसान संगठनों में अभी एकमत नहीं है। ऐसे में अगर बड़े स्तर पर किसान संगठन कमेटी के साथ चर्चा करने में असहयोग करते हैं, तो ये सरकार के पक्ष में जा सकता है। क्योंकि इसे निर्णय को टालने और अदालत का आदेश ना मानने के तौर पर देखा जाएगा।
गौरतलब है कि किसानों द्वारा तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा है। इनमें कन्ट्रैक्ट फार्मिंग, एमएसपी समेत अन्य कई मुद्दों पर विरोध शामिल था। हालांकि, सरकार ने कई मसलों पर संशोधन करने की बात स्वीकार की थी। लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार-किसान संगठनों में कोई समझौता ना होते देख, सख्त फैसला लिया है और एक कमेटी का गठन कर दिया है। अब कमेटी दोनों पक्षों की बात सुनकर अपनी रिपोर्ट अदालत को देगी, जिसपर आगे का फैसला होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं किसान, आंदोलन जारी रहेगा
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनकारी किसानों से वार्ता के लिए चार सदस्यों वाली एक कमेटी का गठन किया है। लेकिन इस बीच किसान संगठनों ने कमेटी को लेकर असहमति जताई है। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश के किसान कोर्ट के फैसले से निराश हैं। अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में कमेटी ने सिफारिश की थी। गुलाटी ने ही कृषि कानूनों की सिफारिश की थी।
किसान नेता राजेवाल ने सिंघु बर्डर पर प्रेस कांफ्रेस कर कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी का हमने कल ही विरोध कर दिया और हमारा आंदोलन सरकार के साथ चलता रहेगा। सभी कमेटी सदस्य सरकार के पक्ष में हैं। लेख लिख-लिखकर कमेटी सदस्यों ने कानूनों को जस्टिफाई किया है। आज हमने पंजाब किसान संगठनों के साथ बैठक की कल हम पूरे संयुक्त किसान मोर्चे की बैठक करेंगे। सोमवार को हमने प्रेस नोट में बताया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट कोई कमेटी बनाएगा तो हमें मंजूर नहीं है। हमें लगता है कि जो सरकार नहीं कर पाई वो सुप्रीम कोर्ट के जरिए करा रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सारे सदस्य सरकार को सही ठहराते रहे हैं। ये लोग प्रेस में लेख लिखकर कानूनों को सही ठहराते रहे हैं तो ऐसी कमेटी के सामने क्या बोलें। हमारा ये आंदोलन चलता रहेगा।
राकेश टिकैत ने ट्वीट किया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या कानून के समर्थक रहे हैं। अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाये जाने की सिफारिश की थी। देश का किसान इस फैसले से निराश है। राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों की मांग कानून को रद्द करने व न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाने की है। जब तक यह मांग पूरी नहीं होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का परीक्षण कर कल संयुक्त मोर्चा आगे की रणनीति की घोषणा करेगा।