हर घर में लक्ष्मण रेखा
आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस परिस्थितियों का भी ऐलान कर दिया जिसके लिए उम्मीद की जा रही थी। जनता कफ्र्यू के बाद कुछ राज्यों में लॉकडाउन की व्यवस्था की गयी लेकिन कई स्थानों पर इस लॉकडाउन का गंभीरता से पालन नहंी किया गया। इधर कोरोना के मरीजों की संख्या लगातार बढती जा रही है जिसे देखते हुए केंद्र सरकार ने आखिर 21 दिन का लॉक डाउन घोषित कर दिया है। यानी कि मंगलवार रात से 14 अप्रैल तक पूरे देश में लगभग कफ्र्यू जैसी स्थिति ही रहेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि आपके घर के बाहर लक्ष्मण रेखा खींच दी गयी है जिसे किसी ने भी पार नहीं करना है। जाहिर है कि इस प्रकार की व्यवस्था जल्द लागू किए जाने की उम्मीद थी और इस स्थिति को लागू करने का यही सबसे महत्वपूर्ण समय भी है। ठीक नवरात्र शुरू होने से पहले इस निर्णय के पीछे भीड़ कम करने का भी उद्देश्य है। सरकार की ओर से कोरोना से लड़ने के लिए 15 हजार करोड़ रूपए की व्यवस्था की गयी है। 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई निरंतर बनी रहेगी लेकिन लोगों को इस 21 दिन के परीक्षा काल में खुद को साबित करना ही होगा। कोरोना से जिस प्रकार से भारत ने लड़ाई लड़ी है वह बेहद ही सराहनीय है, हालांकि कुछ संभ्रांत एवं तथाकथित शिक्षित लोगों ने इस जंग में अपनी भूमिका का सही तरह से निर्वहन नहीं किया, जिस कारण कोरोना के खतरे की जद में कई लोगों के आने की संभावनाएं बन गयींं। बार-बार समझाने के बाद लोगों को घरों के अंदर बंद रखने में देश भर में स्थानीय प्रशासन के हाथ-पैर फूल गए। कई जगह ना चाहते हुए भी पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। साफ तौर पर इसे कफ्र्यू ही मानना चाहिए जिसके अनुसरण के लिए बिना नानुकर किए हर व्यक्ति को तैयार रहना चाहिए। लोगों की हठधर्मिता का ही परिणाम है कि केंद्र सरकार को इस प्रकार का फैसला लेना पड़ा। बात करें उत्तराखंड की तो यहां स्थिति नियंत्रण में समझी जा रही है लेकिन बावजूद इसके कुछ ऐसे मामले भी सामने आऐं हैं जिनमें लोगों ने अपनी बिमारियों को छिपाया है। स्वास्थ्य महकमा ऐसे लोगों को लेकर चिंतित है, क्योंकि यही वे लोग हैं जो सरकार एवं स्वयंसेवकों, पुलिस, मीडिया एवं हैल्थ वर्करों के प्रयासों को पलीता लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आखिर वह निर्णय ले ही लिया है जिसक अनुमान लगाया जा रहा था। 12 दिन का यह समय कोई बहुत अधिक समय नहीं है, खासतौर से जीवन बचाने के लिए कुछ भी नहीं। समाज को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी हर किसी की है, और इस जिम्मेदारी में बाधा बनने वाले लोगों के साथ सख्ती से ही निपटा जाना चाहिए। समय आ गया है, अपने प्रधानमंत्री के आग्रह को अपनी इच्छाशक्ति बनाने का।