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सपा में बीजेपी की सेंधमारी से अखिलेश को झटका, बेंगलुरु में बैठक से पहले के तीन दिन सबसे महत्वपूर्ण

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नई दिल्ली, एजेंसी। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जिन नेताओं और उनके जातिगत समीकरणों की बदौलत 2024 में 80 सीटों का दावा कर रहे थे, उसका आधार कमजोर होने लगा है। भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी की इस मजबूत तैयारी में सेंधमारी करते हुए जिस तरीके से सियासी बिसात बिछाई उससे फिलहाल समाजवादी पार्टी को अपनी नई रणनीति पर विचार करने को मजबूर कर दिया।
ऐसे में चर्चा तो इस बात की भी हो रही है कि बंगलूरू में होने वाली विपक्षी दलों की अहम बैठक में अगर अखिलेश यादव शिरकत करने जाते हैं तो इस बीच कहीं भाजपा सपा के कुछ और नेताओं को न तोड़ ले जाए। इस सेंधमारी को रोकने की तैयारी में अखिलेश और पार्टी के बड़े नेता जुट गए हैं। जानकारों का कहना है कि अगले तीन दिन उत्तर प्रदेश की सियासत में बहुत महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2022 में विधानसभा चुनावों में मजबूत सफलता पाने वाले अखिलेश यादव ने 2024 के लिए बड़ी सियासी जमीन तैयार की। यह सियासी जमीन पिछड़ों अति पिछड़ों और दलितों को जोड़कर तैयार की जा रही थी। अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा चुनावों में मिली सफलता के पीछे गैर यादवों पिछड़ों और अति पिछड़ों की ताकत मानकर चल रहे थे। यही वजह रही कि समाजवादी पार्टी ने अपनी इसी ताकत को और आगे बढ़ाने के लिए न सिर्फ पिछड़े और अतिपिछड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ना शुरू किया बल्कि उनके आधार पर माहौल भी बनाना शुरू कर दिया।
राजनीतिक जानकार उपेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि बीते दो दिनों में जिस तरीके की सियासत उत्तर प्रदेश में बदली है उससे समाजवादी पार्टी का तैयार किया गया पूरा ढांचा लड़खड़ा गया है। इसमें उनके साथ आए सबसे महत्वपूर्ण दल सुभासपा और महान दल जैसे सहयोगियों ने अपना रास्ता बदल दिया। रही सही कसर दारा सिंह चौहान ने इस्तीफा देकर पूरी कर दी। चर्चा हो रही है कि कहीं और बड़े नेता समाजवादी पार्टी से अपनी राहें बदल कर भाजपा की ओर कर सकते हैं। यूपी की सियासत में अगले तीन दिन ऐसे ही सेंधमारी के लिए बड़े महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जब समूचे देश के सभी प्रमुख विपक्षी दलों को एकजुट किया जा रहा है तो उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के सदस्यों और सहयोगियों का टूटना बड़ा झटका है। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि किसी के जाने से समाजवादी पार्टी जैसी विचारधारा वाली पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
चौधरी कहते हैं कि जिन मुद्दों को लेकर समाजवादी पार्टी सियासी मैदान में है उन्हीं मुद्दों को आधार बनाकर आगे चलने वाले और भी कई नेता उनके साथ जुड़ने जा रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक जटाशंकर सिंह का मानना है कि समाजवादी पार्टी को विपक्षी दलों के समूह की बैठकों में उनकी इसी मजबूत ताकत के लिए बुलाया जाता है। अगर यही ताकत समाजवादी पार्टी की कमजोर हो जाएगी तो फिर विपक्षी दलों के समूहों में समाजवादी पार्टी की अहमियत और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पार्टी की अपनी सियासी रणनीति कमजोर होगी।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख घटक दलों और उनके बड़े नेताओं में की जाने वाली सेंधमारी को लेकर समाजवादी पार्टी के भीतर बड़ी बैठकों का दौर जारी है। सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने सेंधमारी तब की है जब अखिलेश यादव बेंगलुरु में होने वाली बैठकों में शामिल होने की पूरी रणनीति तैयार कर रहे थे। चर्चा इस बात की भी हो रही है कि भारतीय जनता पार्टी अगले कुछ दिनों में समाजवादी पार्टी के और भी कई बड़े नेताओं को अपने पाले में शामिल कर सकती है। ऐसे में बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या अखिलेश यादव बेंगलुरु में होने वाली बैठक में शिरकत करेंगे या लखनऊ में रहकर अपनी पार्टी में नई रणनीति तैयार करेंगे।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी में समाजवादी पार्टी में सेंधमारी की टाइमिंग तभी चुनी जब बेंगलुर में अखिलेश यादव प्रमुख विपक्षी दलों के पीछे बैठकर 2024 में लोकसभा चुनावों के खिलाफ बड़ी रणनीति बनाने की तैयारी में थे। समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि फिलहाल अखिलेश यादव बेंगलुरु में होने वाली बैठक में शामिल तो होंगे लेकिन उनकी नजर उत्तर प्रदेश के सियासी उठापटक पर लगातार बनी रहेगी। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि अखिलेश यादव का बेंगलुरु में ऐसे दौर में रहना जब पार्टी के कुछ नेता और सहयोगी संगठन भाजपा में शामिल हो रहे हैं, यह दर्शाएगा कि वह तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी विपक्षी दलों की एकता को जोड़कर 2024 में भाजपा सरकार को हटाने के लिए साथ चल रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में खासतौर से पूर्वांचल के इलाके में समाजवादी पार्टी के सहयोगी दलों को अपने साथ जोड़ा है उससे उसने निश्चित तौर पर पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों (पीडीए) को मजबूत करने वाली सपा मुहिम को रोकने की ही तैयारी है। राजनीतिक विश्लेषक जटाशंकर सिंह कहते हैं कि यूपीए के बदले पीडीए की मांग करने वाले अखिलेश यादव ने जब इनसे भी समीकरणों का ताना-बाना बुनना शुरू किया तो भारतीय जनता पार्टी ने उस समीकरण को ही बिगाड़ना शुरू कर दिया जिस नींव पर समाजवादी पार्टी इमारत बुलंद करने जा रही थी। सियासी जानकारों का कहना है दारा सिंह चौहान, सुभासपा के नेता ओपी राजभर समेत और भी कई नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की तैयारी करना है। सूत्रों का कहना है ये ऐसे नेता हैं जो अखिलेश यादव के पीडीए के फार्मूले को मजबूत कर रहे थे।

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