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अखिलेश होंगे विपक्षी नेताओं को जोड़ने वाले सूत्रधार! कोलकाता की बैठक से मिले ऐसे संकेत

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नई दिल्ली, एजेंसी। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी देश में विपक्षी नेताओं का बड़ा धड़ा तैयार कर रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर भी देश के विपक्षी नेताओं का बड़ा धड़ा तैयार कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी विपक्षी नेताओं का एक बहुत बड़ा धड़ा तैयार कर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। अब बड़ा सवाल यही है क्या यह सभी विपक्षी धड़े एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरीके से समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कोलकाता में हुई है, उससे अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव सभी विपक्षी दलों को एक सूत्र में पिरोने की पूरी कोशिश में लगे हैं। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन करने के साथ ही अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी के साथ बड़ी बॉन्डिंग को लेकर आगे चलने का इशारा साफ कर दिया। सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि क्या अखिलेश यादव सभी विपक्षी दलों को पिरोने के लिए बड़े सूत्रधार के तौर पर सामने आ रहे हैं।
समाजवादी पार्टी की रणनीति को तय करने के लिए कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में कई बिंदुओं पर चर्चा हुई, लेकिन सबसे अहम बात जो सियासी गलियारों में चर्चा का विषय हुई वह यही कि आखिर समाजवादी पार्टी ने कोलकाता को ही क्यों चुना। हालांकि, अखिलेश यादव ने इसका जवाब तो दिया, लेकिन उससे इतर भी कई और पहलुओं को राजनीतिक विश्लेषक अपने नजरिए से ही देख रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में कोलकाता में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के कई सियासी मायने भी है। इसमें सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण बिंदु यही है कि अखिलेश यादव और ममता बनर्जी की राजनैतिक कैमिस्ट्री मजबूत है। चूंकि, 2024 के चुनावों को लेकर विपक्षी दल एक बार फिर से अलग-अलग जगहों से बड़े राजनैतिक गठबंधन को धार दे रहे हैं। राजनैतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार राहुल बनर्जी कहते हैं कि बीते कुछ समय में बड़े विपक्षी दलों के राजनैतिक आयोजनों में अखिलेश यादव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
राहुल बनर्जी कहते हैं कि इस वक्त ममता बनर्जी से लेकर केसीआर और नीतीश कुमार से लेकर स्टालिन तक जो भी बड़ा विपक्ष का राजनीतिक दल वलगाई, सबको एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।उसमें अखिलेश यादव ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जो कॉमन लीडर के तौर पर सबके साथ जुड़े हैं। इसके पीछे तर्क देते हुए बनर्जी कहते हैं कि अखिलेश यादव इससे पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुके हैं। वह स्टालिन के जन्मदिन पर कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ मंच साझा कर चुके हैं। इसके अलावा अखिलेश यादव की बिहार में नितीश कुमार गठबंधन के साथ चल रही आरजेडी के नेताओं के साथ ही अच्छी पकड़ है। पारिवारिक नातेदारी के चलते अखिलेश यादव लालू यादव के बीच रिश्ते भी बेहतर है। केसीआर पहले ही अखिलेश यादव और ममता बनर्जी के साथ मिलकर बड़े गठबंधन की ओर चलने का इशारा कर चुके हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ममता बनर्जी और कांग्रेस के नेताओं के बीच में आपसी संवाद ना के बराबर होने के चलते इस गठबंधन में कांग्रेस के शामिल करने कि फिलहाल कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। चूंकि नीतीश कुमार पहले ही बगैर कांग्रेस के किसी बड़े गठबंधन की बात स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में वाया अखिलेश यादव, लालू और नीतीश को राजनीतिक गठबंधन के लिए साथ जोड़ने की गुंजाइश भी नजर आ रही है।
ऐसे तमाम कयासों के बीच में अखिलेश यादव ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि अभी देश में कई तरह के गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर एक गठबंधन की कवायद कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी एक गठबंधन की तैयारी कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कहते हैं कि यह सभी राजनीतिक दल क्षेत्रीय पार्टियां हैं। कांग्रेश राष्ट्रीय पार्टी है इसलिए उनकी भूमिका तो तय होनी ही चाहिए। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव आने वाले दिनों में एक बड़े गठबंधन के बड़े सूत्रधार के तौर पर भूमिका निभा सकते हैं। हालाकी अभी भी सभी विपक्ष के राजनीतिक दलों को एक साथ जोड़ना बड़ी चुनौती है।

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