आतंकियों के हाथ लग सकती है सेना की कॉम्बैट यूनिफॉर्म, कैसे खुले बाजार में बेची जा रही है वर्दी?
नई दिल्ली, एजेंसी। सेना की वर्दी भी हथियार, गोला-बारूद और मिसाइलों की तरह ही महत्वपूर्ण एवं रणनीतिक अहमियत रखती है। अगर यही वर्दी, आतंकवादियों और राष्ट्र विरोधी ताकतों के द्वारा इस्तेमाल में लाई जाए तो वह सेना को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। पुणे में भारतीय सेना की कॉम्बैट यूनीफॉर्म अनाधिकृत तरीके से बिक रही थी। राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में भी ऐसी ही घटनाएं देखने को मिली हैं। सेना ने लोकल पुलिस के साथ मिलकर कॉम्बैट यूनीफॉर्म बरामद की हैं। भारतीय सेना ने अपनी नई कैमोफ्लाज पैटर्न ड्रेस के डिजाइन और कैमोफ्लेज पैटर्न के बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) प्राप्त कर लिए थे। इसके बावजूद यह वर्दी ओपन मार्केट में पहुंच जाती है। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी.श्रीकुमार का कहना है कि मौजूदा समय में कॉम्बैट यूनीफॉर्म निजी कंपनियों द्वारा तैयार की जा रही है। टीसीएल के तहत 4 आयुध कारखानों को यह जिम्मेदारी नहीं दी गई। एक तो इस वर्दी के कपड़े की क्वॉलिटी घटिया है, तो दूसरा इस यूनीफॉर्म का बाजार में पहुंचना, सुरक्षा के साथ खिलवाड़ की आहट है।
श्रीकुमार ने बताया, केंद्र सरकार ने 41 आयुध कारखानों को सात निगमों में तब्दील कर दिया था। रक्षा क्षेत्र के कर्मचारी संगठनों ने सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। हालांकि तमाम विरोधों को दरकिनार कर सरकार ने दो वर्ष पहले आयुध कारखानों को निगमों में परिवर्तित कर दिया। इसके बाद भारतीय सेना के लिए विभिन्न तरह की ड्रेस और पैराशूट तैयार करने वाले आयुध कारखानों से वर्कलोड छीना जाने लगा। आर्मी, एयरफोर्स और नेवी ने अपने जवानों के लिए कॉम्बैट यूनिफॉर्म सहित अन्य साजोसामान खरीदने का जो टेंडर जारी किया, उसमें ऐसी शर्तें लगा दी गईं, जिससे आयुध कारखाने, उस प्रक्रिया में भाग ही न ले सकें। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ने इस बाबत जनवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा था। उसमें कहा गया था कि अभी तक इन वस्तुओं की सप्लाई, आयुध कारखानों द्वारा ही की जाती रही है। आयुध कारखानों द्वारा तैयार ड्रेस एवं दूसरी वस्तुओं की गुणवत्ता और समय पर सप्लाई, इसके लिए सेना द्वारा कई अवसरों पर प्रशंसा भी की गई है। इसके बावजूद अब इन कारखानों को पर्याप्त काम नहीं दिया जा रहा। टीसीएल के तहत चार आयुध कारखानों को सेना की नई डिजाइन वाली वर्दी का कार्यभार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव श्रीकुमार के मुताबिक, सेना द्वारा आयुध कारखानों को नजरअंदाज करते हुए चार निजी फर्मों को बहुत सस्ती दरों पर 12 लाख नई यूनीफॉर्म का ऑर्डर दे दिया गया। पहले ऐसे सभी ऑर्डर, आयुध कारखानों को मिलते थे। अब सेना की घटिया क्वॉलिटी वाली वर्दी की पहचान वाला ये नया डिजाइन बाजार में आसानी से उपलब्ध है। हाल ही में सेना द्वारा आयुध कारखानों को नजरअंदाज करते हुए 4 निजी फर्मों को बहुत सस्ती दरों पर 12 लाख नए आर्मी यूनीफॉर्म का ऑर्डर दिया गया था। सीएसडी कैंटीन में सेना की वर्दी का कपड़ा 2400 रुपये प्रति सेट में बेचा जाता है। चार निजी फर्मों ने यह ऑर्डर 1571 प्रति सेट दिया है। जब आर्मी कैंटीन में कपड़ा ही 2400 रुपये में बेचा जाता है, तो निजी कंपनियां 1571 रुपये में वह भी सिली हुई वर्दी कैसे दे सकती हैं। इसमें निश्चित रूप से गुणवत्ता से समझौता होगा। इसका खामियाजा जवान को ही भुगतना पड़ेगा। इस बाबत रक्षा मंत्री और सीवीसी से शिकायत की गई है। सेना को खुद के और देश हित में निजी कंपनियों को दिए गए वर्दी के ऑर्डर को वापस लेना चाहिए। यह ऑर्डर टीसीएल के तहत 4 आयुध कारखानों को सौंप देना चाहिए।
श्रीकुमार ने कहा, टीएसएल के तहत चार आयुध कारखानों को 1200 करोड़ का काम चाहिए। सरकार अभी इतना वर्क लोड देने के लिए तैयार नहीं है। मौजूदा समय में इन कारखानों के पास मुश्किल से 250 करोड़ का काम भी नहीं है। सरकार ने अक्तूबर-नवंबर तक एक हजार करोड़ रुपये का काम देने का भरोसा दिया था, लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ भी होता नहीं दिख रहा। सेना की वर्दी को प्राइवेट हाथों में देना ठीक नहीं है। आजकल आतंकवादी और राष्ट्रविरोध तत्व सुरक्षा बलों की वर्दी पहनकर बड़े हमलों को अंजाम दे देते हैं। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ की मांग है कि कम से कम, सेना की वर्दी को निजी हाथों में न सौंपा जाए। ये सुरक्षा और सेना, दोनों के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा। ये आयुध कारखाने, 150 साल पुराने हैं। इन्हें बंद करने का प्रयास न किया जाए। ये आयुध कारखाने, देश की प्रॉपर्टी हैं। ओसीएफ शाहजहांपुर 120 साल से अधिक पुराना आयुध कारखाना है। इसी तरह ओसीएफ अवाडी भी साठ साल से सेना की जरूरतों को पूरा कर रह है। इन कारखानों से कभी कोई वर्दी, खुले बाजार में नहीं गई। कारखानों का सिस्टम इस तरह का था, वहां ऐसी कोई हरकत हो ही नहीं सकती थी।
गत वर्ष भारतीय सेना द्वारा 11,70,159 कॉम्बैट आर्मी यूनिफॉर्म ‘डिजिटल प्रिंट’ की खरीद के लिए प्रतिबंधित शर्तों को लागू किया गया था। यह सब इसलिए किया गया, ताकि टीसीएल के अंतर्गत चार आयुध कारखानों को कार्यभार न मिल सके। एआईडीईएफ ने इस संबंध में भी रक्षा मंत्री को पत्र लिखा था। इस वर्ष के शुरू में भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना ने भी अब अपने कर्मियों के लिए ड्रेस आइटम की खरीद की निविदा जारी की थी। इसमें भी आयुध कारखानों को दरकिनार करने का प्रयास किया जा गया। इस घटनाक्रम से हैरान अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ ने रक्षा मंत्री को भेजे अपने विरोध पत्र में कहा था, इससे पहले भी टीसीएल के तहत 4 आयुध कारखानों के प्रति सौतेला व्यवहार किया गया था। दशकों से जब आयुध कारखाने ही इन वस्तुओं का निर्माण करते रहे हैं, तो अब निगमीकरण के बाद सेना की वर्दी, टेंट, बूट और अन्य विशेष उपकरणों सहित सभी प्रकार के ट्रूप कंफर्ट आइटम्स का ऑर्डर, प्राइवेट कंपनियों को क्यों दिया जा रहा है। निगमीकरण के बाद यह भरोसा दिया गया था कि आयुध कारखानें को पूरा कार्यभार मिलेगा। सरकार ने टीसीएल के तहत 4 आयुध कारखानों को पूर्ण कार्यभार प्रदान नहीं कर, अपनी उस प्रतिबद्धता का घोर उल्लंघन किया है। निगमीकरण के बाद, आयुध कारखानों को कार्यभार प्रदान करने और वित्तीय एवं गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करने के मामले में रक्षा मंत्रालय की ओर से हाथ थामा जा रहा है।