उत्तराखंड

पेयजल को राजकीय विभाग बनाते ही बंद हो जाएगी मेंटनेंस के बजट की बंदरबांट

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देहरादून। जल निगम जल संस्थान संयुक्त मोर्चा ने पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने की पैरवी की। जल निगम मुख्यालय में धरना देते हुए मोर्चा पदाधिकारियों ने पेयजल को राजकीय विभाग बनाए जाने के लाभ भी गिनाए। बताया कि राजकीय विभाग बनते ही मेंटनेंस के बजट की बंदरबांट बंद हो जाएगी। अनाप शनाप खरीद के नाम बजट ठिकाने लगा कर बजट बर्बाद नहीं होगा। संयोजक रमेश बिंजौला ने कहा कि कर्मचारियों की मांग है कि जल संस्थान और जल निगम को राजकीय विभाग बनाया जाए। इससे सरकार पर किसी भी तरह का कोई अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं पड़ने वाला। बल्कि सरकार को वित्तीय लाभ ही पहुंचने वाला है। जल संस्थान कर्मचारियों के वेतन, पेंशन का पूरा खर्चा पानी के बिलों की वसूली से निकलता है। पेयजल योजनाओं पर खर्च होने वाली बिजली के बिलों का भुगतान भी सरकार ही करती है।
संयोजक विजय खाली ने कहा कि जल निगम का खर्चा सेंटज से मिलने वाले बजट से होता है। पेंशन मद में सरकार 25 करोड़ की सहायता अलग से करती ही हैं। सेंटज और वेतन मद में आने वाले अंतर की भरपाई भी सरकार ही करती है। पदाधिकारियों ने कहा कि ऐसे में राजकीय विभाग बनाने से मेंटनेंस मद में होने वाली किसी भी तरह की अनियमितता, बंदरबांट पर पूरी तरह रोक लगेगी। सरकार का दखल बढ़ेगा। योजनाओं के निर्माण और संचालन में दोनों एजेंसियां एक दूसरे के पाले में गेंद नहीं डाल सकेगी। अफसरों से लेकर फील्ड स्टाफ की जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी।
धरने में संदीप मल्होत्रा, जीवा भट्ट, रमेश सैनी, टीसी पाटनी, मान सिंह, मदन सिंह, कीर्ति सिंह, सुभाष सल्होत्रा, बेतार सिंह, आनंद सिंह, श्रीपाल सिंह, एसपी सिंह, कमलेश्वर प्रसाद, मनवर सिंह, महेश्वरी देवी, मीरा देवी, राजेश सेमवाल, राजू यादव, राधा देवी, महेंद्र सिंह, नरेंद्र पाल, केबी पांडे, श्रीकांत शर्मा, कैलाश चंद्र, महेंद्र प्रसाद काला मौजूद रहे।

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