“चीनी” में कड़वाहट ज्यादा है
पार्थसारथि थपलियाल
1954 में दिल्ली की सड़कों पर जो मित्रता की मिठास के नारे- “हिंदी चीनी भाई भाई” लगे थे। वजह थी 1949 में नया चीन बनने और भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के
बाद दो पड़ोसी राष्ट्रों के नेताओं के मध्य दिल्ली में पहली मुलाकात हुई थी। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीनी राष्ट्रपति चाऊ एन लाई के मध्य
पंचशील सिद्धान्त पर हस्ताक्षर किए गए थे। पंचशील में सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत थे- 1. एक दूसरे की प्रभुसत्ता और अखंडता का सम्मान, 2. एक दूसरे पर
आक्रमण न करना, 3. एक दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तकक्षेप न करना, 4. समानता और आपसी लाभ को बढ़ावा देना, 5. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की भावना को
बढ़ाना। लेकिन हुआ क्या? 1962 में चीन ने बिना किसी उकसावे की स्थिति के भारत पर आक्रमण कर दिया। नेहरू जी भाई-भाई करते रहे चीन ने कैलाश
मानसरोवर क्षेत्र में 38000 वर्ग किलोमीटर भारत की जमीन हड़प ली। चीन विभिन्न समय भारत -चीन सीमा पर उकसावे का काम करता रहता है। 1967 और
1975 में चीन ने इसी तरह की हरकतें की थी। जून 2017 में भारत-भूटान-चीन सीमा जिसे डोकलाम कहते हैं, वहां पर भी सीमा रेखा को लेकर भारतीय सेना और
चीन की सेना के मध्य धक्का-मुक्की का माहौल काफी दिन तक बना रहा, लेकिन दोनों ओर के कूटनीतिक प्रयासों से सेनाओं को अपनी अपनी पोस्ट्स पर जाना
पड़ा।
इस बार भारत और चीन की सेनाओं के मध्य लद्दाख की ओर से लगने वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा पर 5 मई 2020 से तनाव चल रहा है। यद्यपि 15 जून से पहले
तक सीमा पर दोनों पक्षों में धक्का-मुक्की ही हो रही थी, लेकिन 16 जून की सुबह चीनी सेना एक बार फिर तार-बाड़ लगाने के उद्देश्य से सीमा पर आ गई। जबकि
दो दिन पहले ही भारतीय और चीनी सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों के मध्य इस बात पर सहमति बनी थी कि सीमा पर तनाव कम आने के उद्देश्य से दोनों सेनाएं
अपनी पूर्व में स्थापित पोस्टों पर चली जाय, लेकिन चीन की कुटिल चाल समझना बहुत कठिन है। बैठकें और सहमतियाँ होती रही और तनाव भी चलता रहा। 16
जून की सुबह इसी स्थान पर दोनों सेनाओं के बीच संघर्ष हुआ। चीनी सैनिकों ने लोहे की छड़ों और पत्थरों से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। अभी तक जो
सूचनाएं मिल रही है उनके अनुसार भारतीय सेना के लगभग 20 सैनिक और चीनी सेना के 43 जवान हताहत हुए। यह अत्यंत दु:खद समाचार है। लगभग 45
सालों बाद भारत और चीन के मध्य खूनी संघर्ष हुआ।
दरअसल जब से वुहान शहर में कोरोना वायरस के उपजने और दुनियाभर में इसके फैलने के कारण दुनिया में चीन की किरकिरी हुई है तब से वह अपनी
जनता का ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने पड़ोसी देशों के साथ उन्माद पैदा करने के उद्देश्य से उकसाने वाली गतिविधियों में लगा हुआ है। भारत के उत्तर में
हमारा सांस्कृतिक पड़ोसी नेपाल के मार्फत वह पिथौरागढ़ से लगती सीमा पर भड़काऊ गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। सिंगापुर, मकाऊ और ताइवान में भी वह
भड़काऊ गतिविधियों में लिप्त है। इधर, पाकिस्तान को सहायता देकर भारत की पश्चिमी सीमा को अशांत करने का उसका एजेंडा जग जाहिर है। पाक अधिकृत
कश्मीर में 1963 में चीन-पाक समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान ने 5100 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को दी हुई है जिस कारण वह इस क्षेत्र में सड़कें बनवा रहा है
ताकि पाकिस्तान होकर मध्य पूर्व एशिया तक उसका मार्ग निर्बाध रहे और भविष्य में वह इस क्षेत्र को भी अपने कब्जे में लेले जो उसने अफ्रीकी महाद्वीप के देशों
के साथ किया। पाकिस्तान को इतना बड़ा कर्जदार बना बैठा है कि पाकिस्तान कभी भी उबर नहीं सकता। बांग्लादेश और श्रीलंका पर भी उसकी तिरछी निगाह है।
हिन्द महासागर में उसमें विभिन्न स्थानों पर नौसैनिक अड्डे स्थापित कर लिए हैं।
दुनिया में भारत ने अपना जो रुतबा कायम किया है उससे चीन बौखलाया हुआ है। अगर भारत का सुरक्षा परिषद में स्थान पक्का होता है तो चीन उसे
सहन नहीं कर पायेगा क्योंकि पूर्व में भारत-पाक मसले पर चीन ने हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया, मौका पड़ने पर उसने वीटो पावर का भी अनेक बार इस्तेमाल
किया। चीन ने 1980 के बाद विकास को बढ़ावा दिया और दस वर्षों में उसने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। भारत लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या का
बहु-सांस्कृतिक लोकतांत्रिक देश है, बहुत बड़ा बाजार है, इसके बलबूते पर चीन ने जो माल तैयार किया भारत भेजा। उपभोक्ता वादी लोगों ने चीनी माल को अपनाया
और चीन ने उस पैसे से स्वयं को भारत के विरुद्ध मजबूत किया। इसीलिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “लोकल के लिए वोकल” की बात कही थी भारत के उपभोक्ताओं
को निहित अर्थ समझने चाहिए।
2014 में सितंबर के महीने में चीनी राष्ट्रपति सी जिनपिंन ने अपनी पहली यात्रा अहमदाबाद से शुरू की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोटोकॉल तोड़कर व्यक्तिगत
रूप से अगवानी के लिए गए थे। 2019 में चीनी राष्ट्रपति दोबारा भारत आये, चेनई से अपनी यात्रा शुरू की। सभी को लगता था शायद चीन अब वो 1962 वाला
दिखेबाज नहीं रहा, कहावत है चोर चोरी से जा सकता है हेराफेरी से नहीं। चीन ने अपना असली चेहरा दिखाया और आज वह भारत के लिए चुनौती बन रहा है।
अच्छी बात ये है कि 56 इंच का सीना भारत के पास है जिसके पीछे भारत के कुछ गद्दारों के अलावा पूरा देश है। यह नेतृत्व निर्णय लेने में सक्षम है। अब भारत
2962 का भारत नहीं है, इसलिए चीनी की मिठास से ज्यादा कड़वाहट का स्वाद याद है।