चुनौतियों के चक्रव्यूह से जूझ रही कांग्रेस, लाइलाज हो गया नेताओं का पार्टी छोड़ना
नई दिल्ली, एजेंसी। उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस ने खुद को चुनौतियों के चक्रव्यूह से निकालने के लिए वक्त के हिसाब से चाहे कई अहम बदलावों को लागू करने की घोषणा की है मगर यह एलान भी पार्टी नेताओं में अभी भरोसा पैदा करता नहीं दिख रहा है और गुजरात के तेज-तर्रार युवा नेता हार्दिक पटेल का कांग्रेस छोड़ना इसका ताजा प्रमाण है। गुजरात में चुनाव की दस्तक के बीच पाटीदार समुदाय के प्रमुख चेहरे हार्दिक के पार्टी छोड़ने का अनुमान तो पहले से ही था लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस उन्हें रोकने का इलाज नहीं ढूंढ़ पाई।
वैसे कांग्रेस के लिए उसके नेताओं का पार्टी छोड़ना फिलहाल लाइलाज सियासी बीमारी बन गया है और 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीते आठ सालों में ऐसा कोई चुनाव नहीं जब उसके नेताओं ने पार्टी न छोड़ी हो। गुजरात विधानसभा चुनाव अगले पांच-छह महीने में होने हैं और सूबे में सामाजिक आधार के हिसाब से हार्दिक का कांग्रेस से आउट होना भाजपा के लिए बड़ा विकेट है।
वैसे कांग्रेस की इस लाइलाज बीमारी पर गौर किया जाए तो गुजरात में 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ओबीसी समुदाय के एक और बड़े युवा नेता अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस छोड़ दी थी। जबकि सूबे के पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी को अलविदा कह दिया था।
कांग्रेस में नेताओं के पार्टी छोड़ने की समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त टक्कर देकर 77 सीटें जीतीं मगर आज उसके विधायकों की संख्या 61 ही रह गई है ओर 15 विधायक कांग्रेस छोड़ चुके हैं। हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनाव के दौरान भी नेताओं के पार्टी छोड़ने का सियासी जख्म चुनाव में गहरे से महसूस हुआ।
पंजाब तो ऐसा उदाहरण रहा कि पार्टी ने खुद ही सूबे के अपने सबसे दिग्गज नेता रहे कैप्टन अमरिंदर सिह को कांग्रेस छोड़ने को बाध्य कर दिया और इस चूक से हुए अंदरूनी घमासान ने चुनाव में पार्टी की लुटिया डूबो दी। पंजाब में मिली बड़ी हार के बाद पूर्व कानून मंत्री सूबे के नेता अश्विनी कुमार ने कांग्रेस में अपनी पारी खत्म करने का एलान कर दिया।
पांच राज्यों के हालिया चुनाव से पहले उत्तरप्रदेश में जहां जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, ललितेश त्रिपाठी से लेकर इमरान मसूद जैसे प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दी तो उत्तराखंड में वरिष्ठ नेता किशोर उपाध्याय ने पार्टी को इस बीामारी से उबरने नहीं दिया। वहीं मणिपुर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके गोविनदास कोंथुजाम ने भाजपा का दामन थाम लिया। जबकि गोवा में पार्टी के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों लुइजिनो फेलेरियो और रवि नायक ने पार्टी छोड़ दी।
अभी कुछ ही महीने पहले मेघालय में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह चुके मुकुल संगमा ने पार्टी के 13 में से 12 विधायकों को साथ लेकर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। असम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके रिपुन बोरा को तो पार्टी छोड़े अभी महीना भी नहीं हुआ है। राहुल गांधी की युवा बिग्रेड की सदस्य रहीं तेज-तर्रार नेता सुस्मिता देव ने पिछले साल पार्टी को बाय-बाय कह तृणमूल से राज्यसभा सीट हासिल कर ली।
पश्चिम बंगाल में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी भी कांग्रेस छोड़ने वालों की सूची में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। केरल में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव से पहले दस जनपथ के करीबी रहे पार्टी के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण हर जगह पार्टी इस चुनौती से रूबरू हो रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दर्जनों नेताओं के पार्टी छोड़ने की लिस्ट मिल जाएगी मगर इसके तत्काल बाद बड़ा झटका राज्यसभा में 5 अगस्त 2019 को लगा जब कांग्रेस के मुख्य सचेतक के रुप में भुवनेश्वर कलिता ने अनुच्टेद 370 को निरस्त करने का विधेयक आने से पूर्व रात में व्हिप जारी करने के बाद सुबह पार्टी छोड़ दी। इसके बाद 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पूर्व विपक्ष और कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे राधाष्ण विखे पाटिल ने पार्टी को गच्चा दे दिया।
मार्च 2020 में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल पार्टी छोड़ी बल्कि सूबे में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनवा दी। वैसे 2014 के बाद कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने की बीमारी की लिस्ट बहुत लंबी है जिसमें हिमंता विश्व सरमा, एन बीरेन सिंह, पेमा खांडू और माणिक साहा पूर्वोत्तर राज्यों के मौजूदा चार मुख्यमंत्री इस सूची का हिस्सा हैं।