संपादकीय

अवसरवादिता की हार

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर उपचुनावों ने भारतीय जनता पार्टी को एक बड़ा झटका दिया है। विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षी दलों का जहां सुपड़ा ही साफ कर दिया था तो वही लोकसभा चुनाव के बाद हुए दो विधानसभा उपचुनावों ने भाजपा के पैरों की जमीन ही खिसका दी। अति आत्मविश्वास से लबरेज भाजपा के नेताओं को उम्मीद नहीं थी की इन दोनों उपचुनाव में, खास तौर से बद्रीनाथ सीट पर बड़ा झटका उठाना होगा। असल में बद्रीनाथ सीट पर पहले कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी विधायक थे जिन्होंने लोकसभा से पूर्व भाजपा का दामन थाम लिया था और इस्तीफा दिया था। वहीं हरिद्वार जनपद की मंगलवार सीट पर तत्कालीन बसपा विधायक की मृत्यु होने पर यहां भी उप चुनाव हुए। मंगलोर सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने स्थानीय कार्यकर्ताओं को तवज्जो ना देते हुए बाहरी उम्मीदवार को उतारा जो जीत हासिल नहीं कर सका और भाजपा इस सीट को एक बार फिर जीत पाने में विफल साबित हुई। वहीं बद्रीनाथ सीट पर जैसे हालात पैदा हुए उसने उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा संदेश भी दिया। पूर्व कांग्रेस विधायक जो बाद में भाजपा में शामिल हुए उन्हें पार्टी ने पुनः बद्रीनाथ सीट से अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन बद्रीनाथ की जनता ने भाजपा उम्मीदवार राजेंद्र भंडारी को नकार दिया और यह सीट पुनः कांग्रेस की झोली में आ गई। राजेंद्र भंडारी ने त्यागपत्र देने की एक बड़ी कीमत चुकाई और संभवत उन्हें उम्मीद नहीं रही होगी कि भाजपा की लहर के बावजूद बद्रीनाथ जैसी विधानसभा सीट पर बीजेपी चुनाव हार जाएगी। यहां तारीफ करनी होगी कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन की जिसने न केवल स्थानीय कार्यकर्ता को चुनाव में उतारा बल्कि दल बदलने वाले नेताओं की प्रवृत्ति को भी जनता के बीच प्रभावशाली तरीके से रखा। क्षेत्र की जनता को भी राजेंद्र भंडारी की अवसरवादी हरकत पसंद नहीं आई और उन्होंने जनमत का अपमान करने वाले राजेंद्र भंडारी को इस बार विधानसभा तक नहीं पहुंचने दिया। यह चुनाव प्रदेश की राजनीति करने वालों के लिए एक बड़ा सबक है कि वह अवसर की आड़ में जनता की फैसले का अपमान ना करें। बड़े नेताओं के चेहरे पर जरूरी नहीं की हर बार चुनाव जीते जाएं और यदि जनता एक बार फैसला लेने पर उतर आए तो फिर बड़े-बड़े चेहरे चुनावों में मात खाते हुए देखे गए हैं। बद्रीनाथ में भाजपा की सारी नीतियां और प्रयास धरे के धरे रह गए, भाजपा का पूरा कुनबा बद्रीनाथ और मंगलोर सीट पर अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाता रहा लेकिन इस बार जनता ने भाजपा को किनारे कर दिया। आने वाले समय में दल बदलने वाले नेता बद्रीनाथ चुनाव के परिणाम को निश्चित तौर पर ध्यान में रखेंगे, तो वहीं यह समझने की कोशिश भी करेंगे की जरूरी नहीं कि नेताओं की अवसरवादिता का फैसला जनता को भी स्वीकार हो। इन दोनों सीटों पर हार से हालांकि सत्तारूढ़ दल भाजपा को अधिक फर्क पड़ने वाला नहीं है लेकिन हार राज्य से लेकर केंद्र तक अपना असर छोड़ती है तो कहीं ना कहीं इसका एक नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इस हार को पचाने में अभी भाजपा को लंबा समय लग सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!