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आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड

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देहरादून। यह किसी से छिपा नहीं है कि समूचा उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। यह राज्य निरंतर प्रातिक आपदाओं से जूझता आ रहा है। ऐसे में आपदा प्रभावित गांवों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है।
इस सबके बावजूद आपदा प्रभावितों का पुनर्वास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है। इसकी असली वजह है पुनर्वास के दृष्टिगत राज्य में लैंड बैंक का न होना।
परिणामस्वरूप पुनर्वास की प्रक्रिया लंबी होती चली जाती है। यद्यपि, अब जोशीमठ में भूधंसाव की घटना के बाद उच्च स्तर पर पुनर्वास के लिए लैंड बैंक बनाने को लेकर मंथन शुरू हो गया है। शासन के एक उच्चाधिकारी के अनुसार जल्द ही इस संबंध में जिलों से रिपोर्ट मांगी जाएगी।
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड और प्रातिक आपदाओं का चोली-दामन का साथ है। भूकंपीय दृष्टि से यह राज्य संवेदनशील जोन-पांच व चार के अंतर्गत है। साथ ही प्रतिवर्ष अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूधंसाव, बादल फटने जैसी घटनाओं में बड़े पैमाने पर जान-माल को क्षति पहुंच रही है।
इसके चलते साल-दर-साल आपदा प्रभावित गांवों व परिवारों की संख्या बढ़ रही है। अभी तक आपदा प्रभावित गांवों की संख्या चार सौ का आंकड़ा पार कर चुकी है। उस पर पुनर्वास की तस्वीर देखें तो राज्य गठन से लेकर अब तक 88 गांवों के 1496 परिवारों का ही जैसे-तैसे पुनर्वास हो पाया है।
प्रभावितों के पुनर्वास की राह में सीमित संसाधनों वाले इस राज्य में बजट जुटाना तो चुनौती है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है भूमि की व्यवस्था करना। अभी तक राज्य में ऐसी भूमि किसी भी जिले में लैंड बैंक के रूप में चिह्नित नहीं की गई है, जिसमें आपदा प्रभावितों का पुनर्वास किया जा सके।
यद्यपि, औद्योगीकरण के दृष्टिकोण से पूर्व में राज्य में लैंड बैंक बनाने की बात हुई और इसके लिए देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में कसरत भी हुई, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के दृष्टिकोण से कभी इस बारे में सोचा ही नहीं गया।
यही कारण है कि जोशीमठ में भूधंसाव की घटना के बाद आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए भूमि तलाशने को मशक्कत करनी पड़ रही है। इस घटना के आलोक में अब सरकार और शासन ने भी महसूस किया है कि यदि पुनर्वास की दृष्टि से लैंड बैंक होता तो दिक्कत नहीं आती।
इसे देखते हुए अब सभी जिलों में पुनर्वास के लिए लैंड बैंक को लेकर गंभीरता से मंथन शुरू हो गया है। इस बारे में जिलों से ऐसी भूमि का ब्योरा मांगा जाएगा, जिसे आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए सुरक्षित रखा जा सके।

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