डक्टर की नौकरी से गरीब की जिंद्गी ज्यादा महत्वपू्र्ण: हाईकोर्ट
मुंबई , एजेंसी। बम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने एक डक्टर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि डक्टरों की नौकरी की तुलना में गरीब लोगों का जीवन अधिक महत्वपूर्ण है। कोर्ट में याचिका दायर कर डक्टर ने नौकरी पर बहाली की मांग की थी।
न्यायमूर्ति टीवी नलवाडे और न्यायमूर्ति मंगेश पाटिल की पीठ ने डक्टर ज्ञानेश्वर बोराडे पर किसी भी तरह का नरमी नहीं दिखाई। शिरडी के साईंबाबा अस्पताल में रेजिडेंट मेडिकल अफिसर के रूप में काम करने के दौरान डक्टर को लापरवाही बरतने का आरोपी पाया गया था।
जून 2009 में जब डा. बोराडे ड्यूटी पर थे तो एक 11 वर्षीय लड़के को सांप के काटने के बाद इलाज के लिए चौरिटेबल अस्पताल में लाया गया था। ड बोरडे ने लड़के को बिना देखे साईनाथ अस्पताल में भेज दिया था जो ट्रस्ट द्वारा ही चलाया जाता था। बच्चे को अस्पताल लाने के तुरंत उसे एंटी-वेनम इलाज नहीं दिया गया।
साईनाथ अस्पताल ने भी लड़के को भर्ती करने से मना कर दिया और उसे वापस साईंबाबा अस्पताल भेज दिया। यहां ड बोरडे ने लड़के को लोनी के एक निजी अस्पताल में रेफर कर दिया, लेकिन इस बीच रास्ते में ही बच्चे की मौत हो गई।
विभागीय जांच के बाद ड बोराडे को 6 दिसंबर, 2010 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और हाईाकोर्ट ने जनवरी 2015 में उनकी याचिका को खारिज करते हुए सेवा से हटा दिया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने के बाद डक्टर ने फिर से पिछले साल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। इस याचिका में डक्टर ने जनवरी 2015 के आदेश को रिव्यू करने की मांग की थी।
सोमवार को हाईकोर्ट ने डक्टर की रिव्यू पीटिशन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पिछले आदेश की समीक्षा के लिए कोई तर्कपूर्ण मामला नहीं था। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार द्वारा संचालित और धर्मार्थ अस्पताल मूल रूप से गरीबों के लिए हैं, लेकिन इन दिनों सरकारी अस्पतालों और ट्रस्ट अस्पतालों में काम करने वाले कुछ डक्टरों का दृष्टिकोण ऐसा है कि वे गरीब व्यक्ति के जीवन की परवाह नहीं करते हैं।
पीठ ने कहा कि अगर ऐसे लापरवाह डक्टरों को बख्शा नहीं जा सकता क्योंकि गरीब व्यक्तियों का जीवन ऐसे व्यक्तियों की नौकरी से अधिक महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि जब तक कि उनके नियोक्ताओं द्वारा और अदालत द्वारा भी कड़ा रुख नहीं अपनाया जाता, तब तक डक्टरों के आचरण में सुधार नहीं होगा।