संपादकीय

नई सरकार पर नज़रें

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भारत में नई सरकार के गठन को लेकर 19 अप्रैल से शुरू हुए मतदान के बाद अब प्रक्रियाब आखिरी चरण में पहुंच गया है। सातवें और आखिरी चरण का चुनाव प्रचार खत्म हो गया। करीब 75 दिन चले चुनाव प्रचार पर रोकथाम के साथ ही सातवें चरण में 8 राज्यों की 57 सीटों पर एक जून को मतदान होगा। चार जून को चुनावों के नतीजे घोषित किए जाएंगे। 16 मार्च को चुनाव आयोग ने देश में लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान किया था। अब तक 6 चरणों का चुनाव हो चुका है। छह चरणों में 486 सीटों पर चुनाव हो चुका है। सातवें एवं अंतिम चरण में आठ राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेश चंड़ीगढ़ सहित 57 संसदीय सीटों के लिये मतदान शनिवार को होगा। इस लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने का सीधा संघर्ष एनडीए एवं इंडिया के बीच है और यह दोनों ही राजनीतिक दलों के गठबंधनों का एक समूह है। भारतीय जनता पार्टी जहां देश में राज करने की हैट्रिक बनाने की दिशा में खुद को आश्वस्त मान रही है और चुनावों से पूर्व भारतीय जनता पार्टी ने सीअबकी बार 400 पार” का नारा देकर एक नई लहर बनाने की कोशिश की थी, तो वही इंडिया महागठबंधन मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए पूरी कोशिश में लगे हैं। हालांकि इस बार कई राज्यों में चुनाव का प्रतिशत उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा जिसका एक प्रमुख कारण भीषण गर्मी के दौरान चुनावों की तिथियां तय करना भी शामिल रहा। हालांकि उसके बावजूद जो आंकड़े मतदान प्रतिशत के सामने आए हैं उसके बाद किस गठबंधन की सरकार होगी इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों के अलग-अलग मत हैं। कुछ सर्वे कहते हैं कि एनडीए का घटक दल भारतीय जनता पार्टी इस बार 232 सीट से आगे बढ़ने वाली नहीं है तो वही कुछ सर्वे भाजपा को बहुमत के आंकड़े के आसपास पहुंचता हुआ भी बताते हैं। असली तस्वीर तो 4 जून को ही सामने आएगी जब पूरे देश में आंकड़ों के खेल के बीच नई सरकार के गठन का रास्ता साफ होगा। इस बार के चुनाव में एक प्रमुख बात जो देखने को मिली वह यह थी कि चुनावों के अलग-अलग चरणों में मुद्दे भी बदलते रहे। देश की राजनीति एवम चुनाव प्रचार इलेक्ट्रोल बॉन्ड से लेकर मंगलसूत्र और मुजरे जैसे बयानों तक आकर सिमट गई तो वहीं पूरे चुनाव प्रचार के दौरान आम जनहित से जुड़े जन मुद्दों को किसी भी दल द्वारा अधिक प्रमुखता से उजागर करते हुए नहीं देखा गया। रोजगार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे मुद्दे शायद अब चुनाव प्रचार के दौरान चटकारे लेकर नहीं सुने जाते लेकिन हकीकत यही है कि आम आदमी का जीवन स्तर एवं रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा इन कुछ बुनियादी मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमता है। चुनाव प्रक्रिया के दौरान ईवीएम मशीन की भूमिका पर भी सवाल उठे जिसका मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा लेकिन अधिक कुछ हाथ विपक्ष के हाथ नहीं लगा। हौसला मानना होगा चुनाव ड्यूटी में लगे उन सभी कर्मचारियों का जिन्होंने इस भीषण गर्मी के दौरान अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ अंजाम दिया साथ ही सुरक्षा बलों की भूमिका को तो कतई नकारा नहीं जा सकता। आम जनता ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार तपती दोपहरी में भी मतदान प्रक्रिया में अपना हिस्सा लिया और अब देश एक नए युग की ओर प्रवेश करने जा रहा है जिसमें नई सरकार क्या स्वरूप लेकर जनता के बीच उभर कर सामने आएगी इस पर सब की नजर रहेगी। इतना जरूर है कि जनता भारत की नई सरकार से काफी उम्मीदें लगाई बैठी है खासतौर से देश में सिमट रहे रोजगार एवं काम धंधे को लेकर।

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