कोटद्वार-पौड़ी

गौरैया की घटती संख्या चिंताजनक

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार।
गौरेया की लगातार घटती संख्या को देखते हुये व उसके संरक्षण के लिये 20 मार्च को प्रतिवर्ष गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरूआत वर्ष 2012 में हुई थी। तब से दुनिया भर में हर वर्ष 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाने लगा है।
कुछ साल पहले तक उत्तराखण्ड में घिनुड़ी, हिन्दी में गौरैया व अंग्रेजी में स्पैरो कही जाने वाले इस पक्षी का घरों के बाहर देहरी में दिखना एक सामान्य बात थी, लेकिन विगत 17 साल में इसकी संख्या घटने लगी और आज इसका दिखना कई जगह बंद हो गया है या इनकी संख्या बहुत ही कमी पाई गई है। फसलों पर कीटनाशक दवाईओं का इस्तेमाल होने, मोबाइल टावरों के लगने, नदियों व वायु प्रदूषण से इनकी संख्या में बहुत कमी आई है। इसी प्रकार से मकानों के आधुनिकरण के बाद से इनको घरों में स्थान न मिलने के कारण दूसरे स्थानों के कम सुरक्षित रहना भी इनकी कमी का कारण बना। गौरैया चिड़िया एक बहुत ही छोटी सी सुंदर पक्षी है जो दुनिया भर में पाई जाती है। इसकी सैकड़ों प्रजातियां है।
भारत में चिड़िया की लंबाई लगभग 10 से 16 सेंटीमीटर तक होती है। यह मानवीय बस्तियों में ही रहना पसंद करती है। जहां कहीं जगह मिली वहां घोंसला बना लिया। आमतौर पर यह झुण्ड में रहना पसंद करती है। गौरैया सफेद और हल्के भूरे रंग में पाई जाती है, इसकी चोंच पीली और छोटे-छोटे पंख होते है। नर पक्षी के गले व सिर से ऊपर का भाग भूरा होता है जबकि मादा का सफेद। भोजन की खोज में चिड़िया कई मीलों तक का सफर तय कर लेती है। एक बार में एक पक्षी फरवरी-मार्च में अण्डे देती है जिसके बाद उनसे बच्चे निकलते हैं। घोसलें की खोज नर पक्षी करता है उसके बाद नर व मादा दोनों उसे बनाते हैं। चिड़िया कई तरह के अनाज, फूल, बीज आदि खाती है, लेकिन वहीं यह नन्ही चिड़िया फसलों में पाए जाने वाले कीटों को खत्म करने में योगदान करती है। एक बार में यह नन्ही चिड़िया तीन से चार बच्चों को जन्म देती है। पर अब इसका भविष्य पूरी तरह खतरे में है। इसलिये गौरैया को एक बार फिर से बुलाने के लिए कई स्तर पर काम हो रहा है। इसके लिये स्वयं सेवी संस्थायें तो जो काम कर रही हैं उनके अतिरिक्त हमें भी अपने स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। नये घर जब हम बनाये तो उनके लिये घोसलों के लिये घरों में स्थान बनाकर इसमें अपना योगदान दे सकते है। कुछ लोग उनके लिये लकड़ी का घर बनाते हैं ताकि उनके घोंसला बनाने के लिये उचित जगह मिल जाये, जहां वह आसानी से अंडे और बच्चों को जन्म दे सकें।

गौरैया संरक्षण के लिए 1997 से कार्य कर रहे है कुकरेती

गौरैया प्रेमी शिक्षक दिनेश चन्द्र कुकरेती वर्ष 1997 से गौरैया संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हंै। उन्होंने बताया कि गौरैया भले पुराने स्थान पर अण्डे देना पसंद करती है लेकिन घोंसला वह नया ही बनाती है। बच्चों के लिए नर-मादा बारी-बारी से भोजन लाते हैं। रात को यह बच्चों की चौकीदारी करती हैं। दिनेश कुकरेती ने अपने निवास में गौरैया के लिए 100 से अधिक बॉक्स लगाये है, जिसमें गौरैया निरन्तर आकर घोंसला बनाती हैं। उन्होंने पर्यावरण सन्तुलन के लिये इस पक्षी को बचाने के लिये लोगों को आगे आने को कहा है। उन्होंने कहा कि नन्दपुर में इस वर्ष 1600 से अधिक घोंसले लगाये व बांटे जायेगें। 2020 तक दस हजार से अधिक घोंसले लगाने का लक्ष्य रखा है।

आज मनाया जायेगा गौरैया दिवस
गौरैया प्रेमी शिक्षक दिनेश चन्द्र कुकरेती पिछले कई सालों से 20 मार्च को गौरैया दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन करते है। कार्यक्रम में वह लोगों को घोंसला वितरित करते है। वह अब तक उत्तराखण्ड के अलावा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब के पक्षी प्रेमियों को नेस्ट बॉक्स भेज चुके है। अब तक 12 हजार 5 सौ नेस्ट बॉक्स लगा और बांट चुके है। दिनेश चन्द्र कुकरेती ने बताया कि इस वर्ष शनिवार बीस मार्च को बाल भारती पब्लिक स्कूल पदमपुर मोटाढांक में गौरैया दिवस मनाया जायेगा। कार्यक्रम में नि:शुल्क नेस्ट बॉक्स वितरित किये जायेगें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!