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जानवरों को प्रताड़ित करना पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम का उल्लंघन: मद्रास उच्च न्यायालय

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चेन्नई, एजेंसी। भारत का संविधान हर किसी नागरिक को जीने का अधिकार देता है यह बात आपने कई बार सुनी होगी। लेकिन भारत के संविधान ने जानवरों को भी जीवन जीने की आजादी दी है। अगर इनके जीवन को कोई बाधित करने का प्रयास करता है तो इसके लिए संविधान में कई तरह के दंड़ के प्रावधान हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी जानवर को किसी भी तरह की यातना नहीं दी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति एन सतीश कुमार ने विल्लुपुरम जिले के एक याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए इस आशय का एक अवलोकन किया, जो यह उजागर करना चाहता था कि अधिकारी भूमि अतिक्रमण ध् विवादों के खिलाफ उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने के लिए धीमी या निष्क्रिय हैं।
के मुर्थु ने इस साल 11 अगस्त को तिरुवेन्नाल्लूर पुलिस स्टेशन से जुड़े निरीक्षक के एक आदेश को रद करने के लिए याचिका दायर की थी, जिसने एक भैंस को प्रतीकात्मक रूप से एक याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।
न्यायाधीश ने शुरू में कहा कि उनका विचार है कि इस तरह का लोकतांत्रिक विरोध करने के लिए जानवरों को क्रूरता के अधीन करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए, याचिकाकर्ता द्वारा भैंस या किसी अन्य जानवर को ले जाने और सुबह से शाम तक रखने की प्रार्थना की अनुमति नहीं दी जा सकती है। न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह का त्य स्वयं जानवरों की क्रूरता और पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम का उल्लंघन होगा।
हालांकि याचिकाकर्ता ने अपनी प्रार्थना में बदलाव किया। उन्होंने कहा कि उन्हें बिना किसी जानवर के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति दी जा सकती है। न्यायाधीश ने स्थानीय पुलिस को उसकी याचिका पर विचार करने और पुलिस द्वारा निर्धारित स्थान पर सभी सामान्य शर्तों के साथ आंदोलन करने की अनुमति देने का निर्देश दिया है।

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