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हरियाणा की पंजाब के खिलाफ अवमानना केस की तैयारी, कहा- एसवाईएल पर अब बातचीत नहीं

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चंडीगढ़, एजेंसी। हरियाणा और पंजाब के बीच विवाद बढ़ गया है। हरियाणा ने कहा है कि सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के निर्माण के मसले पर पंजाब से अब कोई बात नहीं होगी। हरियाणा अब इस मामले में पंजाब के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस दर्ज कराने की तैयारी में है।
हरियाणा विधानसभा के मंगलवार को हुए विशेष सत्र में बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ओर से पिछले दो वर्ष के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री को वार्ता की टेबल पर बैठने के लिए कई बार न्योता भेजा गया, लेकिन वह हर बार टाल दिया गया।
पंजाब के सीएम कभी कोरोना तो कभी दूसरे कारणों से इसे टरकाते रहे। अब हरियाणा सरकार पंजाब से बातचीत की बजाय सुप्रीम कोर्ट में एसवाईएल नहर के निर्माण संबंधी आदेश के क्रियान्वयन की अर्जी लगाएगी। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना को लेकर भी याचिका दाखिल की जाएगी। हरियाणा विधानसभा के विशेष सत्र में एसवाईएल का मुद्दा छाया रहा। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल, ओमप्रकाश चौटाला, चौधरी बंसीलाल, चौधरी भजनलाल, भूपेंद्र हुड्डा और अब मनोहर लाल के कार्यकाल के दौरान हुए एसवाईएल के निर्माण को लेकर चर्चा हुई। मामले को इतने वर्षों तक लटकाने के लिए इशारों-इशारों में दूसरे दलों की सरकारों पर ठीकरा भी फोड़ा गया। चर्चा के दौरान कई मौके आए जब एसवाईएल पर बहस पटरी से उतरती दिखी, लेकिन हर बार विधायक संभलते हुए प्रस्ताव के पक्ष में एक हो गए। विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस विधायक किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई तथा इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला ने मौजूदा सरकार द्वारा एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने के लिए उठाए कदमों का हिसाब मांगा।
इस पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने एसवाईएल पर पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया। उन्घ्होंने सदन को बताया कि एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में हरियाणा के पक्ष में फैसला दे दिया था। इसके बाद 2003 में केंद्र सरकार के लोकनिर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को यह नहर बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद पंजाब ने विवादास्पद और अवैध एक्ट पास कर सभी समझौते रद कर दिए। वर्ष 2004 से 2016 तक यह मामला अटका रहा। वर्ष 2016 में फिर से सुप्रीम कोर्ट ने एसवाईएल के पानी पर हरियाणा का हक माना लेकिन उसका एग्जीक्यूशन आर्डर अभी तक नहीं मिला। इस पर विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि सरकार नहर निर्माण में देरी के दोषी लोगों के खिलाफ अवमानना का केस करे। जवाब में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि इसके लिए भी कानूनी सलाह लेनी पड़ेगी कि अवमानना का केस किसके खिलाफ किया जाए, लेकिन हम ऐसा करने वाले हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि एसवाईएल पर वर्ष 2016 में हमारे हक में फैसला आया था। उसके बाद से सुप्रीम कोर्ट में 41 बार एक्जीक्यूशन आर्डर के लिए सुनवाई हो चुकी है। नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट से एक्जीक्यूशन आर्डर लेना होगा। इस पर जल्द सुनवाई के लिए याचिका लगाई हुई है। इसके अलावा प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में लिखित में देगी कि पंजाब के मुख्यमंत्री के साथ बैठक संभव नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट अपने स्तर पर फैसले को लागू कराए।
एसवाईएल पर मौजूदा सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे अभय चौटाला पर कटाक्ष करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर हमें प्रचार चाहिए होता तो हम भी कस्सी लेकर पंजाब जा सकते थे। लेकिन, हमें तो प्यासी धरती की प्यास बुझाने के लिए एसवाईएल चाहिए, प्रचार नहीं। हर चुनाव में एसवाईएल को मुद्दा बनाया जाता रहा है, लेकिन विगत विधानसभा चुनाव के दौरान हमारी सरकार चुपचाप एसवाईएल निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लड़ती रही। हमने इसका राजनीतिक लाभ लेने की कोई कोशिश नहीं की।

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