हाईकोर्ट ने जल विद्युत उत्पादन पर वाटर टैक्स लगाने संबंधी एक्ट को ठहराया सही
नैनीताल । नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के जल विद्युत उत्पादन पर वाटर टैक्स लगाने संबंधी एक्ट को सही ठहराते हुए इसके खिलाफ विभिन्न हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट कंपनियों की ओर से दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पूर्व में कोर्ट ने 2016 में इस एक्ट के क्रियान्वयन में रोक लगाई थी।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तराखंड सरकार को राहत मिली है। हाइड्रो पावर कंपनियों व उत्तर प्रदेश विद्युत निगम ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की डबल बेंच में अपील करने का निर्णय लिया है।
न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ के समक्ष पूर्व में हुई सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया गया था। जिसके बाद कोर्ट ने शुक्रवार को यह महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। मामले के अनुसार अलकनंदा हाइड्रो पावर लिमिटेड, टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड, नेशनल हाइड्रो पावर करपोरेशन, सहित अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें कहा था कि राज्य बनने के बाद उत्तराखंड सरकार ने राज्य की नदियों में जल विद्युत परियोजनाएं लगाने के लिए विभिन्न कंपनियों को आमंत्रित किया और उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश राज्यों व जल विद्युत कंपनियों के मध्य करार हुआ।
जिसमें तय हुआ कि कुल उत्पादन के 12 फीसदी बिजली उत्तराखंड को निशुल्क दी जाएगी। जबकि शेष बिजली उत्तर प्रदेश को बेची जाएगी। लेकिन 2012 में उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड वाटर टैक्स अन इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन एक्ट बनाकर जल विद्युत कंपनियों पर वायर की क्षमतानुसार 2 से 10 पैंसा प्रति यूनिट वाटर टैक्स लगा दिया। जिसे याचिकाकर्ताओं की ओर से चुनौती दी गई थी।
हाईकोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि विधायिका को इस तरह का एक्ट बनाने का अधिकार है। यह टैक्स पानी के उपयोग पर नहीं बल्कि पानी से विद्युत उत्पादन पर है जो सांविधानिक दायरे के भीतर बनाया गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता कंपनियों के पक्ष में 26 अप्रैल 2016 को जारी अंतरिम रिलीफ आर्डर को भी निरस्त कर दिया। जिसमें राज्य सरकार ने इन कंपनियों को विद्युत उत्पादन जल कर की करोड़ों रुपये के बकाये की वसूली हेतु नोटिस दिया था।