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नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान में भूपेंद्र यादव बोले, बढ़ने का समान अवसर मिले तो कुंद हो सकता है जातिवाद

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नई दिल्ली, एजेंसी। जनता सरकार से विकास की अपेक्षा तो रखती है, लेकिन चुनाव का मौसम आते ही भारतीय राजनीति में जातिवाद का नारा ज्यादा बुलंद होने लगता है। यह आम मान्यता और मजबूत होने लगती है कि जातिवाद के तड़के के बगैर चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। लेकिन केंद्रीय श्रम व रोजगार तथा पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव इस मत से पूरे सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि विद्रूप जातिवाद का लाभ उठाने के बजाय राजनीति में रहते हुए हर वर्ग को आगे बढ़ने के समान अवसर व गरिमामय जीवन देने का काम किया जाए तो जातिवाद का संकुचित रूप खत्म हो सकता है। दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय नरेन्द्र मोहन की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में उन्होंने कहा कि जातिवाद सामाजिक व्यवस्था का आधार है और इसकी चुनौती गतिशीलता का न होना है। अगर इसे आसान कर दिया जाए तो स्थितियां बदल सकती हैं।
बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा जैसे कई राज्यों में भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों में शामिल रहे भूपेंद्र यादव ने रविवार को आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में श्चुनाव, विकास और जातिवादश् विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारतीय इतिहास के चार महापुरुषों- महात्मा गांधी, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को आधार बनाते हुए कहा कि कहा कि इन चारों ने अलग-अलग तरह से जातिवाद को खत्म करने की कोशिश की। उस पीड़ा को झेल चुके अंबेडकर ने आरक्षण की बात की तो आधार जाति नहीं अस्पृश्यता को बनाया। महात्मा गांधी ने खुद ही शौचालय साफ करने का निर्णय लेकर उस अंतर को मिटाने का प्रयास किया, जिसमें शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम करने वालों का स्तर अलग होता है। उन्होंने आध्यात्मिक रूप से इसे खत्म करने का प्रयास किया था। दीनदयाल उपाध्याय ने अंतिम व्यक्ति की बात की, जिसे आधार बनाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने सबका साथ सबका विकास को आगे बढ़ाया है। तो लोहिया ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व देकर समाज के पिछड़े लोगों के स्तर में गतिशीलता लाने का प्रयास किया था।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जातिवाद को लेकर कुछ लोग विद्रूप खेल खेलते हैं। कुछ लोग वोट बैंक का माध्यम बनाते हैं, जो खतरनाक होता है। उससे समाज में असंतुलन पैदा होता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में जाति बहुत कुछ पेशे से जुड़ी होती है। कई बार सरनेम से व्यक्ति के बारे में मान्यता बना ली जाती है। उसे तभी खत्म किया जा सकता है, जब वर्गो में गतिशीलता बनी हो। पेशा जाति से न जुड़े और हर पेशे में तकनीक उसी तरह पहुंचे जिस तरह मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति के पेशे से जुड़ी होती है। भूपेंद्र ने कहा कि मोदी सरकार में इसे अमली जामा पहनाने की कोशिश हो रही है। जातिवाद के नकारात्मक पहलू को छोड़कर विकास के मानक बढ़ाए जा रहे हैं। शिक्षा सर्वसुलभ हो रही है जो किसी भी समाज के आधार का मूल है। शिक्षा निचले तबके को ऊपर बढ़ने में मदद करती है। दूसरा प्रयास है-गरिमापूर्ण जीवन यानी स्वास्थ्य, भोजन, रोजगार के अवसर, गांव तक सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं। उन्हें सम्मान मिल रहा है। ऐसे प्रयास उग्र जातिवाद के खिलाफ सामाजिक विकास का वातावरण बना सकेंगे। उन्होंने इस सवाल को भी खारिज किया कि जातिवाद हमेशा विकास पर हावी होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई राज्य हैं, जहां के मुख्यमंत्री की जाति वहां की आबादी के कुछ हिस्से के बराबर भी नहीं होती है।

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