भारत को जेनोफोबिक कहने पर जयशंकर का बाइडन को जवाब
नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की जेनोफोबिया वाली टिप्पणी पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भारत का समाज हमेशा दूसरों के लिए खुला रहा है। जयशंकर ने इसे लेकर केंद्र सरकार की ओर से लाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सीएए मुसीबत में फंसे लोगों के लिए दरवाजे खोलता है। इकोनॉमिक टाइम्स को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां नागरिकता संशोधन अधिनियम है, जो मुसीबत में फंसे लोगों के लिए दरवाजे खोलने का काम करता है। मुझे लगता है कि हमें उन लोगों के लिए खुला रहना चाहिए जिन्हें भारत आने की जरूरत है और जिनका हक बनता है।’
एस जयशंकर ने कहा, ‘हमारी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा नहीं रही है। भारत तो हमेशा से अनोखा देश रहा है। असलियत में मैं कहूंगा कि दुनिया के इतिहास में यह एक ऐसा समाज है जो बहुत ही खुला है। तरह-तरह के समाजों से अलग-अलग लोग भारत आते रहे हैं।’ इस दौरान उन्होंने सीएए का विरोध करने वालों पर नाराजगी जताई। विदेश मंत्री ने कहा कि ऐसे लोग हैं जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा कि सीएए से 10 लाख मुसलमान भारत में अपनी नागरिकता खो देंगे। इस तरह की बातों के बावजूद भारत में किसी की नागरिकता नहीं गई। उन्होंने कहा, ‘पश्चिमी मीडिया का एक हिस्सा ऐसा है जो ग्लोबल नैरेटिव को अपने हिसाब से चलाना चाहता है। इसी क्रम में वह भारत को निशाना बना रहा है। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें भरोसा है कि उन्हें इस नैरेटिव को कंट्रोल करना चाहिए।’
आखिर जो बाइडन ने क्या कहा?
दरअसल, जो बाइडन ने कहा था कि ह्यक्वाडह्ण के 2 साझेदार भारत और जापान व अमेरिका के 2 प्रतिद्वंद्वी रूस और चीन विदेशियों से द्वेष रखते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका की तरह इनमें से कोई देश अप्रवासियों का स्वागत नहीं करता। बाइडन ने चुनाव के लिए चंदा एकत्र करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा, ‘यह चुनाव आजादी, अमेरिका और लोकतंत्र के बारे में है। इसलिए मुझे आपकी सख्त जरूरत है। आप जानते हैं, हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ने का एक कारण आपकी और कई अन्य लोगों की वजह से है। क्यों? क्योंकि हम अप्रवासियों का स्वागत करते हैं। इसके बारे में सोचें। चीन आर्थिक रूप से इतनी बुरी तरह ठहर सा क्यों रहा है? जापान को क्यों परेशानी हो रही है? रूस क्यों है? भारत क्यों है? क्योंकि वे विदेशियों से द्वेष हैं। वे अप्रवासियों को नहीं चाहते।’