कल से शुरू होगा सिद्धबली बाबा वार्षिक अनुष्ठान, बिना मास्क के मंदिर में नहीं मिलेगा प्रवेश
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। हर साल की तरह इस साल भी श्री सिद्धबली मंदिर में भव्य अनुष्ठान किया जाएगा। श्री सिद्धबली बाबा वार्षिक अनुष्ठान महोत्सव कल (आज) 4 दिसम्बर से शुरू हो रहा है। तीन दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान का समापन 6 दिसंबर को होगा। शुक्रवार को सुबह पांच बजे पिंडी महाभिषेक से वार्षिक अनुष्ठान का शुभारंभ होगा। सिद्धबली मंदिर समिति ने वार्षिक अनुष्ठान की सभी तैयारियां पूरी कर ली है। महोत्सव समिति ने कोरोना संक्रमण के चलते भजन संध्या को रद कर दिया है। साथ ही अन्य आयोजनों से भी आम श्रद्धालुओं को दूर रखा जाएगा।
कोविड-19 के कारण इस बार अनुष्ठान के कार्यक्रमों में फेरबदल किया गया है। सिद्धबली मंदिर समिति के अध्यक्ष कुंज बिहारी देवरानी ने बताया किश्री सिद्धबली अनुष्ठान के कार्यक्रम कोरोना की स्थिति व सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक सीमित किये गये हैं। इसके तहत गर्भ ग्रह, पिंडी पूजा यथावत रहेगी, यज्ञ अनुष्ठान यथावत रहेंगे, लेकिन अबकी बार सांस्कृतिक प्रोग्राम, भजन संध्या कार्यक्रम व सिद्धबली बाबा की मनमोहक झांकियों को स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि सिद्धबाबा के डोले को ही नगर भ्रमण करवाया जाएगा। उपजिलाधिकारी योगेश मेहरा ने बताया कि मेले को लेकर संबंधित विभागीय अधिकारियों की बैठक ली गई है। उन्होंने कहा कि सिद्धबली मेले में काफी श्रद्धालु आते है। सिद्धबली मंदिर वन सीमा से लगा हुआ है, वन विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया गया कि हाथियों का मंदिर के आसपास आवागमन न हो इसका विशेष ध्यान रखें। ताकि किसी प्र्रकार की कोई अप्रिय घटना न हो। एसडीएम ने बताया कि 4 जून 2020 का जो एसओपी जारी की गई है उसका पूर्णत: पालन करने को मंदिर समिति को कहा गया है। खासतौर पर मंदिर में प्रतिमा, घंटियां इत्यादि आदि को छूने से कोरोना एक-दूसरे में फैल सकता है, इसलिए इनको छूना प्रतिबंधित किया गया है। इसके साथ-साथ प्रसाद वितरण को भी प्रतिबंधित किया गया है। श्रद्धालुओं के आने-जाने के गेट अलग-अलग होगें। मंदिर में प्रवेश करने से पहले सभी श्रद्धालुओं की थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। बिना मास्क के किसी भी व्यक्ति को मंदिर एवं आयोजन स्थल पर प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। एसडीएम ने कहा कि 65 वर्ष से अधिक वरिष्ठ नागरिक, 10 वर्ष से कम के बच्चे, गर्भवती महिलाएं सहित जिनमें कोरोना बीमारी के लक्षण है उनको सलाह दी गई है कि वह घर पर ही रहे। उपजिलाधिकारी ने मंदिर समिति के सदस्यों से अपील की है कि वह सिद्धबली डोली यात्रा के दौरान किसी भी तरह की भीड़ एकत्रित न होने दें। कहा कि डोली यात्रा के दौरान प्रसाद वितरण भी नहीं किया जाएगा। यात्रा में केवल मंदिर समिति के सदस्य ही शामिल होंगे। डोली यात्रा सिद्धबली मंदिर से नजीबाबाद चौराहे तक निकाली जाएगी।
सिद्धबाबा के दर्शन को दूर-दूर से आते है श्रद्धालु
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार कस्बे से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर लगभग 3 किमी0 आगे खोह नदी के किनारे बांयी तरफ एक लगभग 40 मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है गढ़वाल प्रसिद्ध देवस्थल सिद्धबली मंदिर। यह एक पौराणिक मंदिर है। कहा जाता है कि यहां तप साधना करने के बाद एक सिद्धबाबा को हनुमान की सिद्धि प्राप्त हुई थी। सिद्धबाबा ने यहां बजरंग बली की एक विशाल पाषाणी प्रतिमा का निर्माण किया। जिससे इसका नाम सिद्धबली हो गया (सिद्धबाबा द्वारा स्थापित बजरंग बली)।
खोह नदी के किनारे राम भक्त हनुमान को समर्पित श्री सिद्धबली का प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में बहुत दूर-दूर से दर्शनार्थी बड़ी संख्या में आते हैं। श्री सिद्धबली बाबा को इस क्षेत्र में भूमि के क्षेत्रपाल देवता के रूप में भी पूजा जाता है। भक्तों का विश्वास है कि पवित्र भावना से जो कोई भी मनोती श्री सिद्धबली बाबा से मांगता है, वह अवश्य पूर्ण होती है। क्षेत्र के किसान फसल खलिहानों से उठाने से पहले दूध, गुड, अनाज सर्वप्रथम श्री सिद्धबली बाबा को चढ़ाते हैं। मंदिर में रविवार, मंगलवार एवं शनिवार को भण्डारे की परम्परा है। हालांकि अब प्रतिदिन इस मंदिर में भंडारे होते है और अगले कई सालो के लिए पहले से ही भंडारे बुक है। मनौती पूर्ण होने पर भक्तजन भण्डारा करते हैं। कहा जाता है कि श्री सिद्धबली बाबा सप्ताह में 6 दिन समाधि में रहते थे। ऐसा विश्वास है कि श्री सिद्धबाबा आज भी रविवार को दर्शन देते हैं। श्री सिद्धबाबा को आटा, गुड, घी, भेली से बना रोट एवं नारियल का प्रसाद चढ़ता है एवं हनुमान जी को सवा हाथ का लंगोट व चोला भी चढ़ता है। इस स्थान पर कई अन्य ऋषि मुनियों का आगमन भी हुआ है। इन संतो में सीताराम बाबा, ब्रह्मलीन बाल ब्रह्मचारी नारायण बाबा एवं फलाहारी बाबा प्रमुख हैं। यहां साधक को शांति अनुभव होती है। पौष संक्रान्ति को श्री सिद्धबाबा का तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है जिसमें लगातार तीन दिन तक बड़े भण्डारे आयोजित होते हैं एवं सवा मन का रोट का प्रसाद बनाया जाता है।
गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से मिली थी सिद्धबाबा को सिद्धि
मान्यताओं के अनुसार सिद्धबली कत्युर वंश के राजा के पुत्र थे, जिन्हें गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से सिद्धि प्राप्त हुई थी। श्री सिद्धबली मंदिर ने अपनी पुस्तक में भी इसका उल्लेख किया है। माना जाता है कि सिद्धबाबा ने पुराने कोटद्वार स्थित सिद्धों के डांडा नामक पहाड़ी पर कई सालों तक तप किया था। मंदिर में हर दिन सवा मुठ्ठी या सवा किलो रोट चढ़ता है। रोट चढ़ाने से भगवान सिद्धबली प्रसन्न होते हैं।