कण्वाश्रम भारतीय संस्कृति का परिचायक
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार के तत्वावधान में कालिदास जयंती के अवसर पर पौड़ी जिले में महाकवि कालिदासस्य ग्रंथेषु भारतीया संस्कृति विषय पर सम्मेलन का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. पराग जोशी महाकवि कुलगुरू कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय महाराष्ट्र ने कहा कि कालिदास ने वैदिक परंपरा के अनुसार लौकिक साहित्य में काव्यों की रचना की है। अभिज्ञान शकुंतलम में वर्णित कण्वाश्रम भारतीय संस्कृति का परिचायक है, जो कि वैदिक परम्परा पर आधारित है।
डॉ. पराग जोशी ने कहा कि ब्रह्मचर्य, आश्रम, गुरू एवं शिष्य के अध्ययन काल की सुदीर्घ परंपरा रही है। कालिदास ने प्रकृति का सुंदर वर्णन मानवीकरण के रूप में किया है तथा आज भी भारतीय संस्कृति में जो परंपराएं विद्यमान है उन्हीं को मेघदूत जैसे ग्रंथ में मानवीय व्यवहार में उतारा है। विशिष्ट वक्ता डॉ. कुलदी पंत ने कहा कि हर व्यक्ति जैसे पुत्र होने पर उत्सव मनाता है उसी तरह शकुंतला भी पशुपुत्रोत्सव मनाती थी। वह पेड़ पौधों को पानी देने के बाद ही पानी ग्रहण करती थी। डॉक्टर नामेन्द्र ध्यानी ने कहा कि वैदिक साहित्य का प्रभाव कालिदास के लैकिक साहित्य में दृष्टिगोचर होता है। वह शिव भक्त थे उन पर बौद्ध कालीन प्रभाव भी पड़ा है। डॉ. वाजश्रवा आर्य ने कहा कि कालिदास ने भारत में ही नहीं बल्कि विश्व की संस्कृति में संस्कृत साहित्य को सबके सामने रखा। उनका नाटक महाकाव्य खंड काव्य फिल्म जगत के लोगों के लिए भी प्रेरणादाई रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गढ़वाल सभा के महासचिव राकेश मोहन ध्यानी ने कहा कि वास्तव में कालिदास ने सारे साहित्य जगत को एकत्रित किया है। आज भी उनके ग्रंथ शोध एवं शिक्षण के विषय हैं। कार्यक्रम में कार्यक्रम सह संयोजक रोशन गौड़, उत्तराखंड संस्कृत आकदमी के प्रकाशन अधिकारी किशोरीलाल रतूड़ी, डॉ. नवीन जसोला, जनपद संयोजक कुलदीप मैंदोेला, आचार्य विशाल प्रसाद भट्ट, गिरीशचंद्र तिवारी, डॉ. आशुतोष गुप्ता, इंद्रमोहन डोभाल आदि उपस्थित रहे।