गौरैया की जिंदगी बचाने को कोटद्वार के शिक्षक ने दे दिए 25 साल
गौरैया दिवस पर विशेष
आज भी गौरैया संरक्षण को कर रहे हैं कार्य, अन्य लोगों को भी कर रहे प्रेरित
-गौरैया का विलुप्त होना पर्यावरण संतुलन के लिए है घातक, मानव जीवन पर पड़ सकता है प्रतिकूल प्रभाव
मनीष कुमार
कोटद्वार : एक समय था जब आंगन में नन्हीं सी गौरैया अपनी मधुर आवाज के साथ दाना बिनती हुई बड़े आराम से नजर आ जाया करती थी। गौरैया की चहचहाहट पूरे वातावरण को खुशनुमा कर देती थी। समय के साथ हमने विकास किया और उस विकास की मार नन्हीं गौरैया नहीं झेल पाई। आज गौरैया पक्षी विलुप्ति की कगार पर है, जो कि पर्यावरण के साथ मानव जीवन के लिए भी चिंता का विषय है। हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना किसी स्वार्थ के गौरैया संरक्षण के लिए पूरा जीवन समर्पित कर चुके हैं और अन्य लोगों को भी गौरैया समेत अन्य विलुप्त होते पक्षियों को बचाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं कोटद्वार के रहने वाले शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती।
नंदपुर निवासी दिनेश चंद्र कुकरेती राजकीय इंटर कॉलेज द्वारी में बतौर सहायक अध्यापक कार्य कर रहे हैं। वह पिछले 25 सालों से गौरैया संरक्षण के लिए समर्पित रूप से जुटे हुए हैं। दिनेश बताते हैं कि उन्हें इस कार्य के लिए कई सम्मान भी मिल चुके हैं। वह गांव-गांव जाकर लोगों को मुफ्त में खुद से बनाए घोसले देते हैं और लोगों को गौरैया संरक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। उनका सपना है कि विलुप्त होते पक्षियों के लिए पक्षी संरक्षण केंद्र बनाया जाए। जिसमें विलुप्त होते 100 से अधिक प्रजातियों के पक्षियों को उनके अनुसार वातावरण बनाकर रखा जाए।
चटाई के नीचे दबकर मर गए थे गौरैया के बच्चे, तब से गौरैया संरक्षण का चढ़ गया था जुनून
शिक्षक दिनेश चंद्र कुकरेती बताते हैं कि बचपन में वह अपने घर के आंगन में चटाई पर बैठकर पढ़ाई किया करते थे। 16 अप्रैल 1997 का दिन वह कभी नहीं भूल सकते। इस दिन वह रोज की तरह आंगन में चटाई पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि चटाई के नीचे गौरैया के तीन बच्चे दबकर मर गए हैं। उनके दिल में बचपन से ही पक्षियों के लिए बहुत प्रेम था, ऐसे में इस घटना ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया। तभी से उन्होंने गौरैया संरक्षण का ठान लिया था। शुरुआत में उन्होंने दीवारों पर छेद करके गौरैया के लिए घोसले बनाए, लेकिन यह प्रयोग उतना सफल नहीं हुआ तो उन्होंने प्लाई के घोसले बनाने शुरू कर दिए। देखते ही देखते यह प्रयोग सफल होने लगा और उन्होंने प्लाईबोर्ड के कई घोसले बनाकर निशुल्क वितरित करने शुरू कर दिए। उनके इस अभियान से कई अन्य लोग भी जुड़े और इन घोसलों को अपने घर में लगाया। दिनेश चंद्र कुकरेती ने भी अपने घर व आसपास के पेड़ों में इन घोसलों को लगाया हुआ है। जिसमें कई गौरैया निवास कर रही हैं।
सरकार ने किसी भी स्तर पर नहीं किया सहयोग
दिनेश बताते हैं कि गौरैया संरक्षण के कार्य के लिए सरकार, वन विभाग या अन्य किसी विभाग ने उनका किसी भी स्तर पर सहयोग नहीं किया है। हालांकि, कुछ निजी संस्थाओं ने उन्हें जरूर प्रोत्साहित किया और विभिन्न मंचों पर उनके इस कार्य के लिए सम्मानित किया। वह कहते हैं कि उन्होंने अभी तक कई गौरैया का इलाज भी किया है। यदि उन्हें सरकार या किसी विभाग की ओर से सहायता मिले तो वह इस अभियान को और भी तेज गति दे सकते हैं।