महान दल ने गठबंधन तोड़ा, राजभर की पार्टी ने भी प्रत्याशियों पर उठाए सवाल, पूर्व मंत्री ने सपा छोड़ी
लखनऊ , एजेंसी। महान दल ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन खत्म कर दिया है। महान दल अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने गठबंधन तोड़ने का एलान करते हुए कहा कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कुछ ऐसे लोगों से घिरे हैं जो समाजवादी आंदोलन को कमजोर करना चाहते हैं। उन्होंने समाजवादी पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि 2024 के चुनाव को लेकर नए सिरे से रणनीति बनाएंगे। मालूम हो कि केशव देव मौर्य ने विधानसभा चुनाव से पहले सपा से गठबंधन किया था।
सपा और महान दल की संयुक्त उम्मीदवार के रूप में उनकी केशव की पत्नी फर्रुखाबाद सदर सीट से चुनाव लड़ी थीं। उन्होंने पांच टिकट की मांग की थी लेकिन उन्हें दो सीट पर टिकट दिया गया था। उधर, सपा के वरिष्ठ नेता हृदय राम ने विधान परिषद चुनाव में एक भी दलित को उम्मीदवार न बनाए जाने पर इस्तीफा दे दिया है।
समाजवादी पार्टी की ओर से विधान परिषद सदस्यों के नामांकन के बाद सुभासपा ने इशारे-इशारे में नाराजगी जाहिर की है। पार्टी के प्रवक्ता ने राष्ट्रीय लोक दल को राज्यसभा सीट देने का भी मुद्दा उठा दिया है। जबकि, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर ने ट्वीट कर भागीदारी का मुद्दा उठाया है।
राजभर ने ट्वीट कर कहा कि भागीदारी देने की बात सिर्फ जुबां तक सीमित रखने से जनता उनको सीमित कर देती है,जो मेहनत करे ताकत दे उनको नजरअंदाज करो, जो सिर्फ बात करे उसको आगे बढ़ाओ, यह आगे के लिए हानिकारक है।
भागीदारी देने की बात सिर्फ जुबा तक सीमित रखने से जनता उनको सिमित कर देती है,जो मेहनत करे ताकत दे उनको नजरअंदाज करो, जो सिर्फ बात करे उसको आगे बढ़ाओ,यह आगे के लिए हानिकारक है।
सुभासपा के प्रवक्ता पियूष मिश्रा ने रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को राज्यसभा प्रत्याशी बनाए जाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने ट्वीट किया कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज का फैसला निश्चित ही सुभासपा के कार्यकर्ताओं को निराश करने वाला है। एक सहयोगी 38 सीट लड़कर आठ सीट जीतता है तो उन्हें राज्यसभा, हमें वहां कोई ऐतराज नहीं लेकिन हम 16 सीट लड़कर छह सीट जीतते हैं तो हमारी उपेक्षा, ऐसा क्यों?
सपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व राज्य मंत्री हृदय राम ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने विधान परिषद चुनाव में दलितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि चार में कम से कम एक सदस्य दलित समाज से विधान परिषद में भेजा जाना चाहिए था।