महिला दिवस पर विशेष: जलपरी नूतन तनु बनी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत
पंकज पसबोला।
कोटद्वार। वास्तव में आज यदि नारी को थोड़ा सा प्रेरित किया जाए तो वह समाज में मुकाम हासिल कर सकती है। आज नारी ने ऐसे कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं कि जिन्हें देखकर लोग दांतों तले उंगली दबाते हैं। ऐसी ही एक नारी जिसने समाज की कई बंदिशों को तोड़ा और आज मुकाम हासिल किया है। पोखड़ा ब्लॉक के क्वीं गांव में रहने वाली नूतन तनु ने भी मुकाम हासिल किया है। वह क्षेत्र में जल परी के नाम से भी जानी जाती है। उसने क्षेत्र की एक संस्था फील गुड ट्रस्ट के साथ जुड़कर कई गांव में सूख चुके प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित कर किया है। वहां उसने सूख चुके स्रोतों में पुन: जल पैदा कर दिया है। नूतन तनु सामाजिक क्रियाकलापों के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सक्रिय रहती है। नूतन एक अच्छी कवियत्री भी है उसकी लिखी कविताएं आकाशवाणी और दूरदर्शन में कई बार प्रसारित हो चुकी है। उसे जलपरी, वृक्ष मित्र सहित अन्य सामाजिक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है।
जनपद पौड़ी गढ़वाल के पोखड़ा ब्लॉक के क्वीं गांव में रहने वाली नूतन तनु। बचपन से ही अपने नानी के घर अपनी मां और भाई के साथ रही। प्रारंभिक शिक्षा लगभग 5 किलोमीटर दूर प्राथमिक विद्यालय चौबट्टाखाल में हुई। हालांकि गांव में प्राथमिक विद्यालय था लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी बनी की उसे दूर चौबट्टाखाल स्कूल में प्रवेश लेना पड़ा। नूतन पंत के परिवार में आजीविका का केवल एक सहारा था कि दुग्ध उत्पादन कर बेचा जाए। उसकी माँ और नानी की कर्मठता से उनके घर में 15 से 20 गाय व भैंसे हुआ करती थी। दूध बेचने वह और उसका भाई चौबट्टाखाल जाते थे। वहां दुकानों, होटलों इत्यादि में दे आते थे। यही क्रम उसकी प्राथमिक शिक्षा से लेकर इंटरमीडिएट और महाविद्यालय तक चलता रहा। पौड़ी से एमए की शिक्षा लेने के बाद देहरादून में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी मिली। लेकिन उसे यह नौकरी रास नहीं आई। फिर गांव आ गई। गांव में उसने फिर अपना काम शुरू किया।
नूतन के जीवन में एक ऐसी घटना घटी जब वह छोटी थी तो गांव में खेतों में हल लगाने के लिए किसी भी व्यक्ति ने उनकी मदद नहीं की। उनका हल लगाने वाला एक रिश्तेदार भी हाथ खड़े कर गया। नूतन पंत ने जब देखा कि गांव के सभी खेतों में गेहूं इत्यादि बोए जा चुके हैं और उनके खेत अब कहीं बंजर न रह जाएं। आने वाले दिनों में वे क्या खाएंगे। इस बात को उसने समझा और अपनी माँ की आंखों में बहते आँसुओं को पोछते हुए वह चुपके से बैल और गाय को खेतों की तरफ ले गई। उसने घर में रखे हल को भी कंधे में रखा और खेत में हल जोत दिया। उसने खेत में गेहूं बो दिए। ग्रामीण इस छोटी सी बालिका की हिम्मत देखते रह गए। जब उसकी माँ को ग्रामीणों के द्वारा पता लगा तो उसकी माँ समझ गई कि अब उसकी बेटी जवान हो चुकी है और वह सब कुछ कर सकती है जो एक लड़का या पुरुष कर सकता है। तब से लेकर आज तक नूतन अपने खेतों में हल स्वयं लगाती है। आज तो वह क्षेत्र में एक मिसाल बन चुकी है। उसने रूढ़ीवादी विचारों का नाश कर दिया जो कहते थे कि महिलाएं हल नहीं लगा सकती। आज वह घर में मशरूम का उत्पादन भी बखूबी से कर रही हैं। वह 1 दिन में 45 से 50 किलो मशरूम पैदा कर लेती हैं। जिसको वह स्वयं अपनी स्कूटी में रखकर निकटवर्ती बाजार चौबट्टाखाल, नौगांवखाल, दमदेवल, देवराज खाल और स्थानीय गांव में बेच देती हैं। उसने मशरूम का प्लाट नई विधि से बनाया है। इसे बनाने के लिए वह स्वयं सहारनपुर गई और वहां से बांस इत्यादि लेकर आई। उसके निर्माण के लिए ऋषिकेश श्यामपुर से कारीगर को बुलाया। आज वह प्रतिदिन हजारों रुपए कमा लेती है।