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मणिपुर हिंसा: ‘हम जनता की अदालत हैं, सुनवाई उपचार प्रक्रिया का हिस्सा’

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नई दिल्ली, एजेंसी। उच्चतम न्यायालय ने हिंसा प्रभावित मणिपुर में बार के सदस्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि राज्य में किसी भी वकील को अदालती कार्यवाही में जाने से नहीं रोका जाए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम जनता की अदालत हैं, और इन मामलों में सुनवाई होने देना उपचार प्रक्रिया का हिस्सा है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मणिपुर राज्य वहां उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से यह सुनिश्चित करेगा कि राज्य के सभी नौ न्यायिक जिलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं स्थापित की जाएं ताकि डिजिटल माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने के इच्छुक वकील या वादी अदालत को संबोधित किया जा सके।
पीठ ने यह निर्देश तब दिया जब यह आरोप लगाया गया है कि एक विशेष समुदाय के वकीलों को वहां उच्च न्यायालय में पेश होने की अनुमति नहीं दी गई। शीर्ष अदालत ने इस मामले में पेश हुए वकीलों से कहा कि वे अदालत में प्रतिद्वंद्वी समुदायों द्वारा किसी भी समुदाय के खिलाफ कीचड़ उछालना बंद करें। पीठ राहत और पुनर्वास के उपायों के अलावा हिंसा के मामलों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं सहित कई याचिकाओं पर दलीलें सुन रही थी। जब एक वकील ने कहा कि उसे भी अदालत के समक्ष कहने के लिए कई चीजें हैं तो पीठ ने टिप्पणी की, ”हम जनता की अदालत हैं और सुनवाई करना उपचार प्रक्रिया का हिस्सा है।”
जब एक वकील ने कहा कि वकीलों को उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने से रोका जा रहा है तो पीठ ने कहा, ”यह तस्वीर का एक पहलू है। हम नहीं मानते कि मणिपुर उच्च न्यायालय काम नहीं कर रहा है।” पीठ ने मणिपुर उच्च न्यायालय बार के अध्यक्ष से पूछा, ”क्या किसी समुदाय के वकीलों को उच्च न्यायालय में पेश होने से रोका जा रहा है? बार अध्यक्ष ने कहा कि हर वकील को अदालत में आने की अनुमति है और वे शारीरिक रूप से या वर्चुअल मोड के माध्यम से पेश हो सकते हैं। पीठ ने कहा, “अगली बार, हमारे समक्ष नमूना आदेशों का संकलन पेश करें जिसमें यह संकेत दिया गया हो कि सभी समुदायों के वकील उच्च न्यायालय के समक्ष पेश हुए हैं।”
कोर्ट ने कहा, “हम संतुष्ट होना चाहते हैं। हमारी अंतरात्मा को संतुष्ट होना चाहिए कि बार के सदस्यों को रोका नहीं जा रहा है, चाहे उनका समुदाय कुछ भी हो।” केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि वकीलों को वहां उच्च न्यायालय में पेश होने से नहीं रोका जा रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत के मंच का इस्तेमाल कर के स्थिति को बिगाड़ने का जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं हो। इसी तरह, हमारी अंतरात्मा को भी संतुष्ट होना चाहिए कि न्याय तक पहुंच में कोई बाधा नहीं है। मेहता ने मणिपुर के मुख्य सचिव द्वारा शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे का हवाला दिया।
उन्होंने कहा कि हलफनामे के अनुसार, 30 अगस्त से 14 सितंबर के बीच उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों के समक्ष कुल 2,683 मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए गए और कई वर्चुअल सुनवाई लॉग-इन दर्ज किए गए। पीठ ने कहा कि मणिपुर राज्य के नौ न्यायिक जिलों में राज्य के सभी 16 जिले आते हैं। पीठ ने कहा कि यदि वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा पहले से उपलब्ध है तो उन्हें चालू किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बार का कोई सदस्य या वादी जो व्यक्तिगत रूप से डिजिटल मंच के माध्यम से उच्च न्यायालय के समक्ष पेश होने का इच्छुक है अदालत को संबोधित कर सके। पीठ ने कहा कि उसके आदेश की तारीख से एक सप्ताह की अवधि के भीतर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू की जाए।

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