मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांचका मामला, नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा था – सरकार की आलोचना राजद्रोह नहीं
नैनीताल। प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ विभिन्न आरोपों की सीबीआई जांच के हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल जाने से प्रदेश सरकार को राहत जरूर मिली है, लेकिन इस प्रकरण पर हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार और राजद्रोह के कानून का विरोध के स्वर दबाए जाने में प्रयोग करने की प्रवृत्ति की जो गंभीर आलोचना की है वह किसी भी सरकार के लिए गहन चिंतन का विषय होने के साथ ही उसे इनके प्रति सजग रहने का संदेश और चेतावनी भी है।
हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री के खिलाफ विभिन्न आरोप लगाने, सोशल मीडिया में पोस्ट लिखने पर दर्ज एफआईआर को निरस्त करने के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान राजद्रोह की धारा जोड़े जाने को अत्यंत आपत्तिजनक मानते हुए सख्त टिप्पणी की है कि सरकारी पदाधिकारियों की आलोचना को राजद्रोह नहीं माना जा सकता। खास बात यह है कि 7 जुलाई 2020 को देहरादून में दर्ज प्राथमिकी में यह धारा नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि बाद में यह धारा जोड़े जाने का कोई आधार नहीं था और सरकार की आलोचना कभी राजद्रोह नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने राजद्रोह के मामले की विस्तृत व्याख्या के साथ ही उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार पर गंभीर चिंता जताते हुए गढ़वाली लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत की पंक्तियां उद्घृत की हैं जिनमें उल्लेख है कि किसी ने मछली को पानी पीते या पंछियों को डाल में सोते नहीं देखा है, (इसी तरह) भले ही रिश्वत लेते अधिकारियों को न देखा हो लेकिन सब जानते हैं कि वे ऐसा करते हैं। कोर्ट ने नेगी के एक अन्य गीत का हवाला दिया है कि ‘कमीशन का मीट भात, अब बस भी करो आखिर कितना खाओगे?’
मामले में उमेश शर्मा के विरुद्घ दर्ज प्राथमिकी और उमेश शर्मा की सोशल मीडिया में पोस्ट की गई टिप्पणियों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक सरकार के पदाधिकारियों की आलोचना नहीं होगी लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता। यदि विरोध को राजद्रोह के नाम पर दबाया जाएगा तो लोकतंत्र कमजोर होगा। जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आरोप लगाना मात्र राजद्रोह नहीं हो सकता।
इस मामले में राज्य की ओर से राजद्रोह की धारा जोड़ना विरोध की आवाज को दबाने का प्रयास है जिसकी कभी अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि जनता के लिए इस भाव में रहना कि उनके जनप्रतिनिधि साफ सुथरे नहीं हैं उचित नहीं है। और यदि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आरोपों संबंधी शंका का समाधान नहीं हुआ तो यह समाज के विकास और सरकार की कार्यक्षमता दोनों में ही बाधक है।