नागरिक संहिता पर गढ़वाल विवि में हुई परिचर्चा
राजनीतिक विज्ञान विभाग के शोध छात्रों ने रखी अपनी बात
जयन्त प्रतिनिधि।
श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में नागरिक संहिता पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें शोध छात्रों के साथ अन्य छात्रों ने भी बढ़ चढ कर हिस्सेदारी करते हुए अपने विचार रखे।
परिचर्चा को संबोधित करते हुए राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम सेमवाल ने कहा कि समान नागरिक संहिता एक ऐसी धारणा है जो पूरे देश में सभी धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक, संपत्ति और उत्तराधिकार आदि के मामलों में एक समान कानून का प्रावधान करती है जो वर्तमान समय में केवल गोवा राज्य में लागू है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे जी के समान नागरिक संहिता पर दिए बयान के कारण बुद्धिजीवियों और शैक्षणिक जगत में फिर से इस विषय पर चर्चा होने लगी है। शोध छात्र मयंक उनियाल ने कहा कि समान नागरिक संहिता एक प्रगतिशील, लोकतांत्रिक तथा समतामूलक समाज की आवश्यकता है लेकिन इसके साथ ही हमें विविधता को भी ध्यान में रखना होगा। शोध छात्र अरविंद रावत ने कहा कि लैंगिक समानता स्थापित करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी जरूरी है। सभी नागरिकों को उनके धर्म, वर्ग, जाति, लिंग आदि के बावजूद समान दर्जा प्रदान करने के लिए भी समान नागरिक संहिता अति आवश्यक है। शोध छात्रा सबीना अख्तर ने इसको परिभाषित किया और कहा कि इनके क्रियान्वयन हेतु समाज और सरकार को परस्पर विश्वास निर्माण करना होगा, साथ ही लोकहित को मध्यनजर रखते हुए इसे चरणबद्ध ढंग से लागू करना चाहिए। शोध छात्र विजय मोहन ने कहा कि इस मुद्दे की वोट बैंक की राजनीति के चलते लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है साथ ही समान नागरिक संहिता द्वारा समानता स्थापित करने का विचार विविधता एवं धर्मनिरपेक्षता को नुकसान पहुंचा सकता है। शोध छात्रा शैलजा मनोड़ी ने कहा कि संविधान सभा में भी इस विषय पर गहन चर्चा की गई। इस पर मतदान कर इसे नीति-निर्देशक तत्वों में शामिल किया। उस समय भी डॉ अंबेडकर जैसे विद्वान समान नागरिक संहिता को मौलिक अधिकारों में सम्मिलित करने के पक्ष में थे। इस परिचर्चा में राजनीति विज्ञान विभाग के शोधार्थी, स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थी उपस्थित रहे।