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नेपाल नहीं माना, भारत के 395 किमी इलाके को अपने में दिखाने वाला नक्शा संसद में पेश

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नई दिल्ली, एजेन्सी। सीमा विवाद पर नेपाल की सरकार ने भारत के साथ बातचीत के सुझाव से साफ इनकार कर दिया है। नेपाल की संसद में वहां की के पी शर्मा ओली सरकार ने संविधान में संशोधन का बिल पेश किया है। इस बिल के जरिए देश के राजनीतिक नक्शे और राष्ट्रीय प्रतीक को बदला जा रहा है। नेपाल ने नए नक्शे में भारत के तीन इलाकों को अपनी सीमा के भीतर दिखलाया है। ये तीन इलाके हैं- कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख जो भारत की सीमा में आते हैं, लेकिन नेपाल इन पर दावा करता आया है। नेपाल की सरकार को संसद के भीतर मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस का भी समर्थन मिल गया है।
संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए
नेपाल के कानून, न्याय और संसदीय कार्य मंत्री शिवमाया तुम्बाहांगफे को बुधवार को यह बिल संसद में रखना था। हालांकि, नेपाली कांग्रेस के कहने पर सदन की कार्यवाही की सूची से बिल हटा दिया गया क्योंकि पार्टी को सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस पर निर्णय लेना था। नेपाली संविधान में संशोधन करने के लिए संसद में दो तिहाई वोटों का होना आवश्यक है।
भारत और नेपाल के बीच ‘कालापानी बॉर्डर’ का मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में है। नेपाल इस मुद्दे पर भारत से बात करना चाहता है। नेपाल का कहना है कि आपसी रिश्तों में दरार पड़ने से रोकने के लिए कालापानी मुद्दे को सुलझाना अब बहुत जरूरी है। सवाल है कि जिस मसले को लेकर दोनों देशों के बीच कभी कोई तनाव के हालात नहीं बने, उसे लेकर अब ऐसी बैचैनी क्यों है? खास तौर पर नेपाल की ओर की। क्या है कालापानी का ये पूरा मसला और नेपाल में क्यों ये बन गया है एक बड़ा मुद्दा, आपको बताते हैं इस विडियो में।

नए नक्शे में 395 वर्ग किमी भारतीय इलाका
अपने नए नक्शे में नेपाल ने कुल 395 वर्ग किलोमीटर के इलाके को शामिल किया है। इसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के अलावा गुंजी, नाभी और कुटी गांवों को भी शामिल किया गया है। नेपाल ने कालापानी के कुल 60 वर्ग किलोमीटर के इलाके को अपना बताया है। इसमें लिंपियाधुरा के 335 किलोमीटर के इलाके को जोड़ दें तो यह कुल 395 वर्ग किलोमीटर हो जाता है। इस तरह से नेपाल ने भारत के 395 किलोमीटर के इलाके पर अपना दावा किया है।

कब शुरू हुआ विवाद, कैसे बढ़ रहा
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया, तभी नेपाल ने इसका विरोध किया था। उसके बाद 18 मई को नेपाल ने नए नक्शे में यह हरकत कर दी। भारत ने साफ कहा था कि ‘नेपाल को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। नेपाल के नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बैठकर बात हो सके।’

इतिहास में क्या हुआ था?
भारत और नेपाल के वर्तमान विवाद की शुरुआत 1816 में हुई थी। तब ब्रिटिश हुकूमत के हाथों नेपाल के राजा कई इलाके हार गए थे। इसके बाद सुगौली की संधि हुई जिसमें उन्हें सिक्किम, नैनीताल, दार्जिलिंग, लिपुलेख, कालापानी को भारत को देना पड़ा था। यही नहीं तराई का इलाका भी अंग्रेजों ने नेपाल से छीन लयिा था। जब नेपाल के राजा ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ दिया तबब अंग्रेजों ने उन्हें इसका इनाम दिया और पूरा तराई का इलाका नेपाल को दे दयिा।

तबकी हार की कसक का फायदा उठा रहे नेता
तराई के इलाके में भारतीय मूल के लोग रहते थे लेकिन अंग्रेजों ने जनसंख्या के विपरीत पूरा इलाका नेपाल को दे दयिा। नेपाल मामलों पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नेपाल के गोरखा समुदाय में वर्ष 1816 की जंग में हार की कसक आज भी कायम है। इसी का फायदा वहां के राजनीतिक दल उठा रहे हैं। उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच जारी इस विवाद में एक दिक्कत यह भी है कि नेपाल कह रहा है कि सुगौली की संधि के दस्तावेज गायब हो गए हैं।
चीन के बहकावे में आकर नेपाल ने अपने नक्शे में बदलाव किया और भारत के कुछ हिस्सों को भी उसमें शामिल कर लिया। लेकिन इस नए नक्शे को वो अपने ही देश की संसद में मंजूरी नहीं दिला सका है। इससे उसकी सारी हेकड़ी निकल गई और अब वो भारत से बातचीत करने को बेताब है। टॉप न्यूज में देखिए इस खबर को विस्तार से, साथ ही कुछ अन्य बड़ी खबरें।

भारत विरोधी हैं नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री
नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा भी वामपंथी हैं। वो नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्हें नेपाल के वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था। केपी शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। ओली ने पिछले चुनाव में भारत के खिलाफ जमकर बयानबाजी की थी। उन्होंने भारत का डर दिखाकर पहाड़यिों और अल्पसंख्यकों को एकजुट किया और सत्ता हासलि कर ली। अब वो चीन की गोद में जा बैठे हैं और उसी के उकसाने पर भारत से रार ठान ली है।

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