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गुजरात की नई नो रिपीट सरकार

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नई दिल्ली, एजेंसी। गुजरात के सियासी घटनाक्रम ने गुरुवार को तब नई करवट ले ली, जब मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की सरकार में सभी मंत्री पदों पर नए चेहरों को शपथ दिलाई गई। यह घटनाक्रम इसलिए भी अहम है क्योंकि जब आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री बनी थीं और उनके बाद जब विजय रूपाणी ने सीएम की कुर्सी संभाली थी, तब भी कुछ पुराने चेहरों को रिपीट किया गया था।
आनंदीबेन पटेल ने जब सीएम पद छोड़ा, तब रूपाणी को सात अगस्त 2016 को मुख्यमंत्री बनाया गया। रूपाणी ने विधानसभा चुनाव के बाद 26 दिसंबर 2017 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा के अंदरखाने यह चर्चा थी कि रूपाणी की नर्म छवि से पार्टी को नुकसान हो सकता है। रूपाणी जैन समुदाय से आते हैं और भाजपा पाटीदारों को भी नाराज नहीं कर सकती थी। कोरोना की दूसरी लहर के बाद अगर कोई सत्ता विरोधी लहर है, तो उसे हल्के में भी नहीं ले सकती थी। इसी वजह से रूपाणी को पद छोड़ने के लिए मनाया गया।
दो बार शपथ लेकर कुल पांच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद रूपाणी ने बीते शनिवार इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने से तीन घंटे पहले तक वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। कार्यक्रम के बाद वे राज्यपाल से मिलने पहुंचे और इस्तीफा दे दिया।
विजय रूपाणी की तरह भूपेंद्र पटेल भी लो-प्रोफाइल नेता हैं, लेकिन वे कडवा पाटीदार समुदाय से आते हैं। इस वजह से पाटीदार वोटरों के बीच उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी पसंद हैं। उन्हें 2017 में आनंदीबेन पटेल के कहने पर घाटलोडिया सीट से टिकट मिला था। पहली बार ही वे विधायक बने और चार साल बाद पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।
भूपेंद्र पटेल चाहते थे कि उनकी कैबिनेट पूरी तरह नई हो। भाजपा आलाकमान भी श्नो रिपीटश् फर्मूला चाहता था। इसी वजह से रूपाणी सरकार के सभी मंत्रियों की टुट्टी हो गई। इस बार तो नितिन पटेल का ही पत्ता कट गया, जो नरेंद्र मोदी की गुजरात कैबिनेट, फिर आनंदीबेन की सरकार और उनके बाद रूपाणी की कैबिनेट में मंत्री रहे थे। आनंदीबेन की सरकार में नितिन पटेल की हैसियत नंबर-2 की थी। रूपाणी की सरकार में वे डिप्टी सीएम थे।
वजह साफ है। पार्टी नहीं चाहती कि विधानसभा चुनाव में उसे कोई नुकसान हो। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के केंद्र की राजनीति में जाने के बाद राज्य में पाटीदार आंदोलन हुआ। जब 2017 में मोदी-शाह के बगैर भाजपा ने विधानसभा चुनाव लड़ा तो पार्टी को सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। उसकी सीटें 100 से कम रह गईं। पार्टी अब 2022 के चुनाव में कोई जोखिम नहीं चाहती। पार्टी जानती है कि अगर विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा तो खामियाजा लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं। अभी सभी सीटें भाजपा के पास हैं।
सात पाटीदार, छह ओबीसी, पांच आदिवासी, तीन क्षत्रिय, दो ब्राह्मण, एक दलित और एक जैन समुदाय के विधायक को जगह दी गई है। अगर जोनवार देखें तो दक्षिण गुजरात से आठ, मध्य गुजरात से सात, सौराष्ट्र-कच्छ से सात और उत्तर गुजरात से तीन विधायकों को मंत्री बनाया गया है। रूपाणी कैबिनेट में जहां एक महिला को मंत्री बनाया गया था, वहीं नई सरकार में दो महिला मंत्री होंगी।
विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी ने आज शपथ ग्रहण से पहले ही इस्तीफा दे दिया। एक घंटे बाद वे मंत्री बन गए। रूपाणी सरकार में जो हैसियत नितिन पटेल की थी, भूपेंद्र पटेल की सरकार में अब वही कद त्रिवेदी का होगा।

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