सीएम नीतीश के ऑर्डर पर आरजेडी कोटे के मंत्री का आदेश रद्द, राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के कर्मियों के तबादले पर रोक
पटना, एजेंसी। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की ओर से इस साल 30 जून को किए गए 489 अधिकारियों के तबादले मंगलवार को रद्द कर दिए गए। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर हुआ है। इनमें अंचल अधिकारी, राजस्व अधिकारी, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी, चकबंदी अधिकारी एवं राजस्व अधिकारी सह कानून गो शामिल हैं। इनके तबादले चार अधिसूचनाओं के माध्यम से किए गए थे। मंगलवार की शाम चारों अधिसूचनाएं रद्द कर दी गईं। विभाग के संयुक्त सचिव कंचन कपूर के हवाले से जारी अधिसूचना में इसका कोई कारण नहीं बताया गया है। तबादला रद्द होने के बाद सभी अधिकारी अपने पुराने पदों पर लौट जाएंगे। इससे पहले रामनारायण मंडल और रामसूरत राय के मंत्रित्व काल में भी तबादले रद्द हुए थे। तब भी अनियमितताओं की चर्चा हुई थी। विभागीय सूत्रों ने बताया कि इसबार भी अनियमितताओं के कारण तबादले रद्द किए गए। विधायकों की शिकायत थी कि विधानसभा क्षेत्र के अंचलों में उनकी अनुशंसा पर राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अधिकारियों की तैनाती नहीं हुई। अधिक नाराजगी सत्तारूढ़ दलों के विधायकों की थी।
राजद विधायकों ने उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से शिकायत की थी। तेजस्वी ने विभागीय मंत्री आलोक मेहता को विधायकों की भावना से अवगत कराया था। मेहता राजद कोटा से ही राज्य मंत्रिमंडल में शामिल हैं। ऐसी ही शिकायत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू कोटे के दूसरी वरीय मंत्रियों के पास भी पहुंची थी। मुख्यमंत्री के पास एक और शिकायत पहुंची थी कि बड़े पैमाने पर किए गए तबादले में अधिकारियों की वरीयता और सामाजिक समीकरण का ख्याल नहीं रखा गया।
कनीय पदाधिकारियों को प्रभारी अंचलाधिकारी के पद तैनात किया गया, जबकि वरीय को राजस्व अधिकारी एवं अन्य पदों पर तैनात कर दिया गया। शिकायत यह भी थी बदनाम अधिकारी भी दंडित होने के बदले पुरस्कृत कर दिए गए। ऐसे अधिकारियों को भी अच्छी पोस्टिंग दी गई, जिनके कामकाज संतोषप्रद्द नहीं थे। सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों की शिकायतों के परिमार्जन के लिए अधिसूचना को संशोधित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया था। 30 जून के बाद होने वाले किसी तबादले पर मुख्यमंत्री की स्वीकृति अनिवार्य होती है। संचिका इसी इरादे से मुख्यमंत्री के पास भेजी गई थी। हालांकि, विभाग के एक अधिकारी का कहना था कि प्रस्ताव में मुद्रण की गड़बड़ी थी, जिसके कारण संशोधन के बदले रद्द करने का प्रस्ताव चला गया था, जिस पर मुख्यमंत्री की सहमति मिल गई। बहरहाल, अब नए सिरे से तबादले की प्रक्रिया शुरू होगी।
पिछले साल भी 30 जून को हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सौ से अधिक अधिकारियों के तबादले 10 जुलाई को रद्द कर दिए गए थे। यह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर ही हुआ था। उस समय एनडीए की सरकार थी। भाजपा विधायक रामसूरत राय विभाग के मंत्री थे। आरोप तब भी यही लगा था कि तबादले में विधायकों की नहीं सुनी गई। पक्षपात किया गया है। उससे पहले भाजपा के ही विधायक रामनारायण मंडल के मंत्रित्व काल में जून वाले तबादले जुलाई में रद्द हो गए थे। आरोप वही था-मनमानी, लेनदेन और पक्षपात।
इस रिपोर्ट पर राज्यसभा सचिवालय ने भी बयान जारी किया है। इसमें कहा गया है कि समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि साहित्य अकादमी या अन्य अकादमियां अराजनीतिक संगठन हैं। इसमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे में जब भी कोई पुरस्कार दिया जाए, तो प्राप्तकर्ता की सहमति अवश्य ली जानी चाहिए। ताकि वह राजनीतिक कारणों से इसे वापस न लौटाए, क्योंकि यह देश के लिए अपमानजनक है।
इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में 2015 में कर्नाटक के प्रख्यात लेखक कलबुर्गी की हत्या का जिक्र करते हुए उसके विरोध में अवॉर्ड वापसी का भी जिक्र किया है। बता दें कि संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी संसद की इस स्थाई समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल हैं। इसकी अध्यक्षता राज्यसभा सांसद और वाईएसआर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वी विजयसाय रेड्डी कर रहे हैं। इससे पहले, फरवरी, 2017 में तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने एक लिखित प्रश्न के जवाब में सदन को बताया था कि पिछले तीन वर्षों में 39 लेखकों ने अपने अवार्ड लौटाए। उनका दावा था कि साहित्य अकादमी ने ऐसे समय पर चुप्पी साध ली, जब उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर आघात किया गया।