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हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे वाली याचिका अनसुनी; सुप्रीम कोर्ट ने मूल रिकॉर्ड पेश करने को कहा

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नई दिल्ली, एजेंसी। साल 2008 में जयपुर में हुए सीरियल बम धमाके मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग वाली राजस्थान सरकार की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका के संदर्भ में यह देखने की जरूरत है कि क्या निर्णय गलत और अनुचित था। बता दें कि जयपुर सीरियल बम धमाके मामले में निचली अदालत ने चार लोगों को मौत की सजा दी थी। इसके बाद जब यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद इस आदेश के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल राजस्थान सरकार की याचिका पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटमरणी ने पक्ष रखा। इस पर जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि बरी करने के आदेश पर रोक लगाने की आपकी याचिका अनसुनी है। आपके असाधारण आवेदन पर विचार करने के लिए हमें यह देखना होगा कि निर्णय प्रथम दृष्टया गलत और अनुचित है। पीठ ने कहा कि जब किसी अदालत से किसी को बरी किया जाता है तो आरोपियों की बेगुनाही धारणा मजबूत हो जाती है। बता दें कि राजस्थान सरकार ने चार आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देते हुए चार अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। वहीं, शीर्ष अदालत में राजस्थान सरकार का पक्ष अटॉर्नी जनरल आर वेंकटमरणी और राज्य सरकार के वरिष्ठ वकील मनीष सिंघवी रख रहे थे।
इस दौरान, बरी किए गए लोगों का पक्ष रख रहीं वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन और अन्य वकीलों ने आरोपियों पर लगाई गई शर्त का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इन शर्तों के तहत वे रोजाना सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच जयपुर के आतंकवाद निरोधक दस्ते के पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे। इस पर पीठ ने कहा कि यह शर्त आरोपियों की आवाजाही पर अनुचित प्रतिबंध लगाती है, हालांकि पीठ ने मामले में अगली सुनवाई पर इस शर्त को लेकर विचार करने की बात कही है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार को ट्रायल कोर्ट से मामले के सारे मूल रिकॉर्ड को पेश करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी कहा कि हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के आवेदन पर जनवरी के दूसरे सप्ताह में विचार किया जाएगा। इसके अलावा अदालत ने राज्य सरकार से गवाही और अन्य दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद केस फाइलों में शामिल करने को भी कहा है।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2008 को जयपुर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में जान गंवाने वालों के पीड़ित परिजनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर रोक से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश की समीक्षा करने के लिए भी रजामंदी दे दी है।
2019 में निचली अदालत ने सुनवाई करते हुए पांच आरोपियों को दोषी पाया था। सैफुर्रहमान, मोहम्मद सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ और मोहम्मद सलमान को फांसी की सजा सुनाई गई थी। एक अन्य आरोपी शाहबाज हुसैन को बरी कर दिया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने चारों दोषियों को दोषमुक्त करते हुए बरी करने का फैसला सुनाया था।
बता दें कि 13 मई 2008 की शाम को गुलाबी नगरी में सीरियल बम धमाकों से दहल गई थी। उस दिन माणक चौक खंडा, चांदपोल गेट, बड़ी चौपड़, छोटी चौपड़, त्रिपोलिया गेट, जौहरी बाजार और सांगानेरी गेट पर एक के बाद एक बम धमाके हुए थे। इनमें 71 लोगों की मौत हुई और 185 से ज्यादा घायल हुए। जयपुर जिला विशेष न्यायालय ने 20 दिसंबर 2019 को चार आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को पलटते हुए पुख्ता सबूत के अभाव और जांच में कमजोरियां और कमियां बताते हुए दोषियों को बरी कर दिया। हाईकोर्ट डिविजनल बेंच ने कहा था कि मामले में जांच एजेंसी को उनकी लापरवाही, सतही और अक्षम कार्यों के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। मामला जघन्य प्रकृति का होने के बावजूद 71 लोगों की जान चली गई और 185 लोगों को चोटें आईं, जिससे न केवल जयपुर शहर में, बल्कि हर नागरिक के जीवन में अशांति फैल गई। पूरे देश में हम जांच दल के दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित जांच और अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने के लिए राजस्थान पुलिस के महानिदेशक को निर्देशित करना उचित समझते हैं।

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