कोटद्वार-पौड़ी

गढ़वाल मंडल में स्कूली बच्चे करेंगे ऋतुराज बसंत का स्वागत

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-पारंपरिक त्योहारों को बचाने के लिए विद्यालयों में धूमधाम से मनाया जाएगा फूलदेई पर्व
-मंडलीय अपर निदेशक ने गढ़वाल मंडल के सभी विद्यालयों को पत्र भेज दिए हैं दिशा-निर्देश
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार : गढ़वाल मंडल के प्रत्येक विद्यालय में छात्र-छात्राएं ऋतुराज बसंत का स्वागत करेंगे। इसे लेकर मंडलीय अपर निदेशक ने गढ़वाल मंडल के सभी विद्यालयों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। सभी राजकीय, अशासकीय, सहायता प्राप्त, निजी शिक्षण संस्थानों को भेजे पत्र में मंडलीय अपर निदेशक ने कहा कि 14 मार्च से 3 अप्रैल तक प्रत्येक विद्यालय में उत्तराखंड का पारंपरिक पर्व फूलदेई मनाया जाएगा। जिसके तहत विभिन्न प्रतियोगिताओं व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
लगातार विलुप्त होते पहाड़ी त्योहारों को नई पीढ़ी से रूबरू कराने व उनके संरक्षण को सरकार की ओर से विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के तहत उत्तराखंड के पारंपरिक त्योहार फूलदेई को नए अंदाज में मनाने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में मंडलीय अपर निदेशक माध्यमिक शिक्षा महावीर सिंह बिष्ट ने गढ़वाल मंडल के सभी विद्यालयों के प्रधानाचार्य व प्रधानाध्यापकों को पत्र भेजा है। पत्र में उन्होंने कहा कि गढ़वाल हिमालय की नाट्य संस्था शैल नट व फूलदेई संक्रांति के संयोजक एवं नगर पालिका परिषद श्रीनगर के सभाषद अनूप बहुगुणा ने उक्त संबंध में एक पत्र भेजा। जिसमें उन्होंने कहा कि चैत्र माह से बसंत ऋतु का भी आगमन होता है। ऐसे में धरती विभिन्न प्रकार के फूलों से महक उठती है। इसी दौरान उत्तराखंड में फूलदेई पर्व मनाया जाता है जो पूरी तरह से बच्चों का पर्व है। उन्होंने अपील की है कि इस पारंपरिक पर्व से नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। इसी के तहत मंडलीय अपर निदेशक ने विद्यालयों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।

विद्यालयों को यह दिए गए हैं निर्देश
-14 मार्च को सुबह छह बजे विद्यालय अपनी सुविधा के अनुसार बच्चों की मदद से घोघा माता की डोली तैयार करवा कर प्रभात फेरी निकालेंगे। प्रभात फेरी के दौरान बच्चों को पारंपरिक डे्रस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा गया है।
-विद्यालय अपने स्तर पर फूलदेई पर्व की थीम पर ड्राइंग/पेंटिंग और लेख जैसी गतिविधि का आयोजन करेंगे। सर्वोच्च पेंटिंग व लेख को निर्धारित तिथि पर प्रदर्शनी में स्थान दिया जाएगा। यह सभी गतिविधि 28 मार्च तक आयोजित की जाएंगी।
-चैती गायन के लिए विद्यालय से अधिकतम छह सदस्यीय दल निर्धारित तिथि पर चैती गायन कार्यक्रम में शामिल हो सकता है। प्रतिभागियों को सम्मानित भी किया जाएगा। फूलदेई कार्यक्रम के समापन की संभावित तिथि तीन अप्रैल प्रस्तावित की गई।

क्या है फूलदेई पर्व और किस तरह मनाया जाता है
फूलदेई उत्तराखंड का एक स्थानीय त्योहार है, जो चैत्र माह के आगमन पर मनाया जाता है। उत्तराखंड में इस चैत्र महीने के प्रारम्भ होते ही अनेक पुष्प खिल जाते हैं, जिनमें फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर, बुरांस आदि प्रमुख हैं। चैत्र की पहली गते से छोटे-छोटे बच्चे प्रत्येक घर की देहरी पर फूल डालना शुरू करते हैं और बसंत का स्वागत करते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव शीत काल में अपनी तपस्या में लीन थे। ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए, लेकिन भगवान शिव तपस्या से नहीं उठे। जिससे सबकुछ बेमौसमी हो गया। आखिरकार मां पार्वती ने ही युक्ति निकाली। उन्होंने सभी शिव गणों को पीताम्बरी जामा पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया। फिर सभी से कहा कि वह देवक्यारियों से ऐसे फूल चुन लायें जिनकी खुशबू पूरे कैलाश को महकाए। सबने ऐसा ही किया और वह फूल सर्वप्रथम शिव के तपस्यालीन मुद्रा को अर्पित किए। जिसे फूलदेई कहा गया, इसके साथ ही सभी एक सुर में आदिदेव महादेव से उनकी तपस्या में बाधा डालने के लिए क्षमा मांगते हुए कहने लगे- फुलदेई क्षमा देई, भर भंकार तेरे द्वार आये महाराज ! शिव की तंद्रा टूटी तो बच्चों को देखकर उनका गुस्सा शांत हो गया और वे भी प्रसन्न मन इस त्योहार में शामिल हुए। तब से पहाड़ों में फूलदेई पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा, जिसे आज भी अबोध बच्चे ही मनाते हैं और इसका समापन बूढे़-बुजुर्ग करते हैं।

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