उत्तराखंड

बागेश्वर में श्राद्घ करना होता है कल्याणकारी, पितरों को मिलती है मुक्ति

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बागेश्वर(आरएनएस) पितृपक्ष में अधिकांश लोग अपने घर पर ही ब्राह्मणों को भोजन करवारकर अपने पूर्वजों का श्राद्घ करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि तीर्थ स्घ्थानों पर जाकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं और वहां उनका श्राद्घ करते हैं। बागेश्वर को कुमाऊं की काशी कहा जाता है। यहां के बारे में ऐसी मान्घ्यता है कि यहां आकर पितरों का श्राद्घ करने से उन्घ्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। वायु पुराण के साथ गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में गया तीर्थ का महत्घ्व सबसे अधिक माना गया है। श्राद्घ कर्म करने के लिए यह स्घ्थान सबसे पवित्र माना गया है। पुराणों में यह स्घ्थान मोक्ष की भूमि और मोक्ष स्घ्थली कही जाती है। कहते हैं यहां आकर पितरों का श्राद्घ कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हेम जोशी ने बताया कि अष्टमी व नवमी में यहां अधिकतर लोग अपने पितरों का श्राद्घ करने पहुंचते हैं। सरयू, गोमती व विलुप्त सरस्वती नदी के संगम पर श्राद्घ व तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।

 

 

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