सोशल डिस्टेंसिंग पर हों अब सख्त
उत्तराखंड में एक ही दिन में कोरोना संक्रमितों की संख्या ने सैकड़े की संख्या को पार किया। यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा था। एक ही दिन में 102 मामले सामने आए जिसमें अकेले देहरादून में ही 54 मामले आए हैं जबकि अल्मोड़ा में 15 मामले सामने आए हैं। कुल 102 मामलों में दो मामले निजी लैब से मिले हैं जबकि 100 मामले उत्तराखंड की सरकारी लैब्स के हैं। इस बड़ी संख्या के सामने आने के बाद इस बात की संभावनाएं भी बढ़ गयी है कि उत्तराखंड के कई जिले अब रेड जोन में आ सकते हैं। इधर सरकार ने कैबिनेट में राज्य में आवाजाही को लेकर नई व्यवस्था चालू की है जिसके तहत सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक बिना पास के भी आवागमन किया जा सकेगा। हालांकि ऑन लाईन पंजीकरण करना ही होगा एवं इसी पंजीकरण को पास मान लिया जाएगा। इससे पूर्व सरकार की ओर से सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक बाजार खोलने का भी फैसला लिया गया है लेकिन कई जनपदों में अभी पुरानी व्यवस्था ही चालू हैं। जिस प्रकार से पूरे प्रदेश में कोरोना संक्रमतों की संख्या में बढोतरी हो रही है उसके बाद एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि कुछ शहरों में रेड जोन की पाबंदियां जारी की जा सकती है। देहरादून के आठ स्थान हॉट स्पॉट में हैं जबकि गैर प्रतिबंधित समय में पूरे उत्तराखंड में सोशल डिस्टेंसिंग की खुल कर धज्जियां उड़ रही हैं। ऐसे हालातों में कैसे हम कोरोना पर नियंत्रण कर पाऐंगे इस पर सरकार को थोड़ी चिंता कर लेनी चाहिए। अब तो कुछ मामले सामुदायिक क्षेत्र से भी आने लगे हैं और इसी प्रकार के मामले सबसे अधिक घातक सिद्घ होते हैं। आज सामने आए अधिकांश मामले या तो क्वारंटीन किए गए लोगों के हैं या फिर ऐसे लोगों के हैं जिनके सैंपल उत्तराखंड प्रवेश करने के समय सीमाओं पर लिए गए थे। ऐसे मामलों से अधिक खतरा नहीं है। इस प्रकार के मामले यदि सामने आते हैं जो समझ लेना चाहिए कि लोग ईमानदारी से अपने बारे में जानकारी दे रहे हैं एवं कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। एक वर्ग ऐसे लोगों का है जो चाहे-अनचाहे अपने व्यापार या फिर दिनचर्या के कारण कोरोना संक्रमित हो जाते हैं, ऐसे लोग जांच रिपोर्ट आने तक कई दूसरे लोगों तक वायरस को फैलाने का काम कर चुके होते हैं। यह चेन फिर चलती चली जाती है, जिसे टे्रस करना ही सबसे बड़ी टेढ़ी खीर है। क्वारंटीन होना कोरोना वायरस को रोकने का सबसे कारगर उपाय है। कोरोना संक्रमितों की संख्या 600 के पार होना कोई अधिक चिंता का कारण नहीं होना चाहिए, चिंता होनी चाहिए ऐसे मामलों को लेकर जो कि सामुदायिक तौर पर अभी अंजान होकर वायरस का वाहक बने हुए हैं। यही कारण है कि कोरोना की रोकथाम के लिए सबसे कारगर केवल और केवल सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना है, किंतु जो हालत बाजार की है उसके बाद तो लगता नहीं कि यह कारगर उपाय कहीं कारगर सिद्घ हो रहा है। कोरोना के बढते आंकड़े एवं मौतों के बाद सोशल डिस्टेंसिंग के लिए सरकार को भी अब बाजार की व्यवस्था के संबंध में कोई ठोस निर्णय लेना ही होगा।